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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ २३ Jare ( भ० ) श्रीभूषण ५३६ श्री वल्लभ (राजा) १७७ श्रीषेण सूरि ३७१ श्रुतकीर्ति ३३८ श्रुतकीर्ति ३०६ (भ०) श्रुतकीर्ति - श्रुत मुनि ४३७ (ब्रह्म) श्रुतसागर ५०८ ( भ० ) सकल कीर्ति ४९१ सकल कीर्ति ४३२ सकल चन्द्र भट्टारक ४३१ ( भ० ) सकल भूषण ५४१ (आचार्य) समन्तभद्र ६२ (लघु) समन्तभद्र ४३० (अभिनव ) समन्तभद्र ५०८ सर्वनन्दी भट्टारक १६८ सर्वनन्दी भट्टारक २१३ सर्वनन्दी १६७ मुनि सर्वनन्दी १२२ सागर नन्दी सिद्धांतदेव ३३६ सागर सेन सिद्धांतिक २७६ सिंहनन्दि गुरु १५६ ( भ० ) सिंहनन्दी ५४६ सुधर्म स्वामी ( गणधर ) २६ सुमति (सन्मति ) देव १४० ( भ० ) सुमति कीर्ति ५४७ सुमतिदेव १४१ सुप्रभाचार्य ४५४ सोमकीर्ति ५१६ सोमदेव २२० सोमदेव ४८६ ( मुनि) सोमदेव ४०० स्वयंभू कवि १८६ स्वामिकुमार १२७ हंस सिद्धान्तदेव ३१६ ( पं० हरपाल (वैद्यक ग्रन्थ कर्ता ) ४४१ हल्ल या हरिचन्द ४६६ (कवि) हरिचन्द्र ४७६ ( महाकवि ) हरिचन्द्र ३१७ हरिदेव ४०१ हर्षनन्दी ३१६ (कवि) हरिषेण २२६ (ब्रह्म) साधारण ४६८ (कवि) सिद्ध और सिंह ३६२ सिद्ध नन्दी १२५ सिद्धभूषण सैद्धान्तिक मुनि १६७ हरिषेण २३० (श्री) हरिषेण २२६ हरिसिंह मुनि ३१६ हस्तिमल्ल ४५२ (ब्रह्म) हेमचन्द्र २९२ सिद्धमेन १०७ सिद्धान्त कीर्ति १६३ हेमसेन ३१६ हेलाचार्य २२५ सिंह नन्दि १०३
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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