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________________ ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य २५७ पुष्पदन्त ने एक प्रशस्ति पद्य में नन्न को उनके पुत्रों के साथ प्रसन्न रहने का आशीर्वाद दिया है । पर उनके नामों का उल्लेख नहीं किया। जसहरचरिउ-यह भी एक खण्ड काव्य है, जिसकी चार सन्धियों में राजा यशोधर और उनकी माता चन्द्रमती का कथानक दिया हुआ है। जो सुन्दर और चित्ताकर्षक है। राजा यशोधर का यह चरित इतना लोकप्रिय अनेक विद्वानों ने संस्कृत अपभ्रंश और हिन्दी भाषा में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। सोमदेव, वादिराज, वासवसेन सकलकीर्ति, श्रुतसागर, पद्मनाभ, माणिक्यदेव, पूर्णदेव, कविरइध, सोमकीति, विश्वभूषण और क्षमाकल्याण प्रादि अनेक दिगम्बर, श्वेताम्बर विद्वानों ने ग्रन्थ लिखे हैं। इस ग्रन्थ में सं० १३६५ में कुछ कथन, राउल ओर कौल का प्रसंग, विवाह और भवांतर पानीपत के वोसल साहु के अनुरोध से कन्हड के पुत्र गन्धर्व ने बनाकर शामिल किया था। यह ग्रन्थ भी भरत के पुत्र और वल्लभनरेन्द्र के गृहमन्त्री के लिये उन्हीं के महल में रहते हुए लिखा गया था। इसी से कवि ने प्रत्येक संधि के अन्त में 'णण्ण कण्णाभरण' विशेषण दिया है। इस ग्रन्थ में युद्ध और लट के समय मान्यखेट की जो दुर्दशा हो गई थी-वहाँ दुप्काल पड़ा था, लोग भूखों मर रहे थे, जगह-जगह नर कंकाल पड़े हुए थे, यह लूट शक सं० ८६४ । वि० सं० १०२६ में हुई थी। कवि ने उस समय मान्यखेट की दुर्दशा का चित्रण किया है। जान पड़ता है कवि उस समय नन्न के ही महल में रहते थे। कवि डड्ढा कवि डडढा-संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान और कवि थे। यह चित्तौड़ के निवासी थे। इनके पिता नाम श्रीपाल था । इनकी जाति प्राग्वाट (पोरवाड़) थी। यह पोरवाड़ जाति के वणिक थे।२।। इनकी एक मात्र कृति संस्कृत पंचसंग्रह है, जो प्राकृत पंचसंग्रह की गाथानों का अनुवाद है। माथर संघ के प्राचार्य अमित गति ने वि० सं० १०७३ में संस्कृत पंचसंग्रह की रचना की है। दोनों पंच. संग्रहों का तुलनात्मक अध्ययन करने से यह स्पष्ट जान पड़ता है कि दोनों में अत्यधिक समानता है। अमितगतिने डडढा के पंचसंग्रह को सामने रखकर अपना पंचसंग्रह बनाया है। अमितगति के पंचसंग्रह में ऐसे भी पद्य उपलब्ध होते हैं जिसमें थोड़ा-सा शब्द परिवर्तन मात्र पाया जाता है । कुछ ऐस भी पाये जाते हैं जिनका रूपान्तरित होने पर भी भावार्थ वही है । उसमें कोई अन्तर नहीं आता। अमितगति के पंचसंग्रह से डड्ढा के पंचसग्रह में कुछ वैशिष्टय भी पाया जाता है । डडढा के पंच संगर में जहां प्राकृत गाथाओं का अनुवाद मात्र है वहां अमितगति के पंचसंग्रह में अनावश्यक अतिरिक्त कथन भी उप लब्ध होता है। कई स्थलों पर अमितगति के पंचसंग्रह की अपेक्षा डड्ढा के पंचसंग्रह की रचना अधिक सुन्दर हुई है। डड्ढा की रचना प्राकृत मूलगाथाओं के अधिक समीप है । वह पद्यानुवाद मूलानुगामी है। कलि मल कलंक परिवज्जियस्स जिय दुविह बइरिणियस्स । कारुण्णकंदणव जलहरस्स दीण जण सरणस्स ॥४ णिवलच्छी कीला सरवरस्स वाएमरि णिवासस्स । गिणस्सेसविउस विज्जाविणोय रिणरयस्स सुद्ध हिययस्स ॥५-नांगकुमार चरित प्रशस्ति १. स श्रीमान्निह भूतले सह सुनिन्नाभिधो नन्दतात् -यशोधर०२ २. श्री चित्रकूट वास्तव्य प्राग्वाटवणिजा कृते । श्रीपाल सुत डड्ढेण स्फुटः प्रकृति संग्रहः ।। ३. वचनहेतुभी: रूपः सर्वेन्द्रियभयाव है। जुगुप्सामिश्च बीभत्स नैव क्षायिकहक चलेत् ॥२२३
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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