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________________ पांचवीं-बाताब्दी से आठवी शताब्दी तक के आचार्य २५६ इन्द्र गुरु यह दिवाकर यति के शिष्य थे। पद्मचरित के कर्ता रविषेण भी इन्हीं की परम्परा में हुए हैं। रविषेण ने पद्यचरित की रचना वीर नि० संबत १२०३ सन् ६४७ में की है अतः इन्द्र गुरु का समय ईसा की ७वीं सदी का पूर्वार्ध होना चाहिये। देवसेन इस नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। उनमें प्रथम देवसेन वे हैं, जिनका उल्लेख शक सं० २२ सन (वि० सं०७५७) केचन्द्रगिरि पर्वत के एक शिलालेख में पाया जाता है। महामनि देवसेन व्रतपाल कर स्वर्गवासी हुए। (जैन लेख सं० भा० १लेख नं० ३२ (११३) बलदेव गुरु यह कित्तर में वेल्लाद के धर्ममेन गुरु के शिष्य थे। इन्होंने सन्यासव्रत का पालन कर शरीर का परित्याग किया था, यह लेख लगभग शक सं०६२२ सन् ७०० का है। अतः इनका समय सातवीं शताब्दी का अन्तिम चरण (जैन लेख सं० भा०१ लेख नं०७ (२४) पृ०४) उग्रसेन गुरु यह मलनर के निगुरु के शिष्य थे। इन्होंने एक महीने का सन्यास व्रत लेकर समताभाव से शरीर का परित्याग किया था। लेख का समय शक सं०६२२ सन् ७०० है। प्रतः इनका समय ईसा की सातवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है। (जैन लेख संग्रह भा० १ पृ० ४) गुणसेन मुनि ये प्रगलि के भांति गुरु के शिष्य गुणसेन ने वृताचरण कर स्वर्गवासी हुए। यह लेख शक सं० ६२२ सन् ७०० ईस्वी का है। (जैन लेख संग्र० भा० १ पृ० ४) नागसेमगुरु यह ऋषभसेन गरु के शिष्य थे। इन्होंने संन्यास-विधि से शरीर का परित्याग कर देवलोक प्राप्त किया। लेख का समय लगभग शक सं०६२२ सन् ७०० है। (जैन लेख सं० भा. १ पृ. ६) सिंहनन्दिगुरु यह वेट्टमुरु के शिष्य थे। इन्होंने भी सन्यास विधि से शरीर का परित्याग किया था। यह लेख भी शक ०.६२२,सन ७०० का उत्कीर्ण किया हुआ है। अतः सिंहनन्दि गुरु ईसा की सातवीं शताब्दी के विद्वान है। (जैत लेख सं०.१पृ०७)
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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