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________________ पुष्पदन्न और भूनबलि भाव और अल्प बहुत्व इन पाठ अनुयोगद्वारो मे से तथा प्रकृति समुत्कीर्तन, स्थान समुत्कीर्तन, तीन महादण्डक, जधन्य स्थिति, उत्कृष्ट स्थिति, सम्यक्त्वोत्पत्ति प्रो र गति प्रागति इन नो चूलिकाओ द्वारा संसारी जीव की विविध अवस्थानों का वर्णन किया गया है। खुद्दाबन्ध- इस द्वितीयखण्ड मे बन्धक जीवो की प्ररूपणा स्वामित्वादि ग्यारह अनुयोगो द्वारा गति आदि मार्गणा स्थानो में की गई है और अन्त मे ग्यारह अनुयोग द्वारा चूलिका रूप 'महादण्डक' दिया गया है। बन्ध स्वामित्व-नामक तृतीय खण्ड मे बन्ध के स्वामियो का विचार होने ने इस का नाम बन्ध स्वामित्व दिया गया है । इसने गुणस्थानो और मार्गणा स्थानों के द्वाग सभी कर्म प्रकृतियो के बन्धक स्वामियों का विस्तार से विचार किया गया है। किम जीव के कितना प्रकृतियो का बध कहा तक होता है, किमके नही होता है, कितनी प्रकृतियाँ किम-किम गुणस्थान में व्यूच्छिन्न होती हे, स्वोदय बन्ध रूप कृतियाँ कितनी है ओर परोदय बन्ध रूप कितनी है। इत्यादि कर्म सम्बन्धी विपयो का बन्धक जीव की अपेक्षा में कथन किया गया है। वेदना-महाकर्म प्रकृति प्राभृत के २४ अनुयोगद्वारा मे मे जिन छह अनुयोगद्वारो का कथन भूतबलि आचार्य ने किया है उसम पहल का नाम कति और दृमरे का नाम वेदना है। वेदना का इस खण्ड में विस्तार से विवेचन किया गया है। वर्गणा - इम वर्गणा खण्ड में स्पर्श कर्म और प्रति अनुयोग द्वारो के साथ छठे बन्धन अनयोग द्वार के अन्तर्गत बन्धनीय का अवलम्बन कर पुद्गल वर्गणाओ का कथन किया गया है, इस कारण इस दिया है। इन पाँच खडो के अतिरिक्त भूतबलि आचार्य ने महाबन्ध नाम के छठवं खण्ड में प्रकृति बन्ध, स्थितिबंध अनुभाग बंध और प्रदेशवध रूप चार प्रकार के बध के विधान का विस्तार के साथ कथन किया है जिसका प्रमाण ब्रह्म हेमचन्द ने चालीस हजार श्लोक प्रमाण बतलाया है। और पांच खण्डो का प्रमाण छह हजार श्लोक प्रमाण सत्र ग्रन्थ है। पट खण्टागम महत्वपूर्ण प्रागम ग्रन्थ है। उसका उत्तरवर्ती ग्रन्थकारो और ग्रन्थों पर प्रभाव अकित है । सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थवातिकादि ग्रन्थो मे उसका अनुकरण देखा जाता है। पुष्पदन्त भूतबलि कौन थे? नहवाण, नहपान और नरवाहन आदि नाम मिलते है। नहपान वमिदेश में स्थित वसुन्धरा नगरी का क्षहरात वश का प्रसिद्ध शासक था। इसकी रानी का नाम सरूपा था। नहपान अपने समय का एक वीर ओर पराक्रमी शासक था और वह धर्मनिष्ठ तथा प्रजा का सपालक था। नहपान के अपने तथा जामाता उषभदत्त या ऋपभदत्त और मत्रो अयम के अनेक शिलालेख मिलते है, जो वर्ष ४१ मे ४६ तक के है। नहपान के राज्य पर ईस्वी सन् ६१ के लगभग गोतमी पुत्र शातकर्णी ने भृगुकच्छ पर आक्रमण किया था। घोर युद्ध के बाद नहपान पगजित हो गया और युद्ध में उसका सर्वस्व विनष्ट हो गया। उसने सधि कर ली। - - - - - - - १-जुनार के अभिलेख में नहान की अन्तिम तिथि ४६ का उल्लेख है । यह शक मवत् की तिथि है। इसमे स्पष्ट है कि वह शक स०४६-७८ -१२४ ईम्बी में गज्य करता था। मके बाद उसके राज्य पर गौतम पुत्र शातकर्णी ने घोर युद्ध के बाद अधिकार कर लिया था। शातकर्णी का एक लेख उपके गज्य के १८वे व वा मिना है। यह १०६ ईम्वी के लगभग सिहासन पर बैठा होगा। दूमग लेख नामिक म २४वे वर्ष का मिला है। -देखो, प्राचीन भारत पा गजनीतिक तथा मास्कृतिक इतिहास १० ५२६ नामिक के दो अभिलेखो से स्पष्ट है कि उमने (गौतमी पुत्र गातकर्णी ने) छहगतवश को पगजित कर अपने वश का राज्य स्थापित किया था। जो गल पम्भी-मुद्राभाण्ड-मे भी इस कपन की पुष्टि होती है। इस भाण्ड मे तेरह हजार मुद्राए है जिन पर नहपान और गौतमी पुत्र दोनो के नाम अकित है। इममे स्पाट हे कि नहपान को पराजित करने के पश्चात् उसने उसकी मुद्राओ पर अपना नाम अकित करने के बाद फिर से उन्हे प्रसारित किया। -देखो प्राचीन भारत का राजनैतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास प०५२७ ज
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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