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________________ जैन-दर्शन मे पुद्गल हो जाता है और हम उस परिवनित परमाणु को ही देख पाते हैं । वास्तविक परमाणु को नहीं । जैन मान्यता के अनुमार वह स्कध है, उसे भी अनुयोगद्वार मे किसी अपेक्षा से परमाणु कहा है । वह व्यावहारिक परमाणु है। विज्ञान भी परमाण को अदृश्य मानता था । परमाणु अर्थात् किसी भी पदार्थ का मवसे सूक्ष्म टुकडा जिसे और सूक्ष्म न किया जा सके । विज्ञान की भाषा में परमाण अर्थात् एक किलोमीटर का सोलह करोडवा हिस्सा । अनेक प्रोटोन, न्यूट्रोन और इलेक्ट्रोन इसकी सरचना मे आधारभूत बनते हैं । माइक्रोस्कोप के माध्यम से विज्ञान ने परमाण के इस रूप को देखने मे सफलता प्राप्त कर ली है । माइक्रोस्कोप वह यत्र है जो प्रकाश किरणो के परावतन द्वारा वस्तु को वही कर दिखाता है । इसके आविष्कार मे भी उत्तरोत्तर आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। अनेक प्रकार के असाधारण प्रक्तिसम्पन्न यत्रो का निर्माण हुआ है। उनमें कुछेक ये हैं ० लाइट माइक्रोस्कोप-वस्तु को अधिक से अधिक दो हजार गुना _वहा कर दिखाने वाला यत्र । • इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप-वस्तु को दस लाख गुना वडा कर दिखाने वाला यत्र । ० इलेक्ट्रोन टनेलिंग स्केनर-वस्तु को तीस करोड गुना वहा कर दिखाने वाला यम । इसका आविष्कार स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक ने किया है, जिसके आधार पर "टनेलिंग ऑफ इलेक्ट्रान्स" का सिद्धान्त विकसित हुआ । जैनदशन सम्मत परमाणु और विज्ञान का "एटम" अनेक समानताओ के वावजूद भी एक नहीं है । रसायन शास्त्र की खोज "एटम" को परमाणु का ही दूसरा रूप नही माना जा सकता । विज्ञान की पूर्व अवधारणा थी कि "एटम" को तोडा नही जा सकता । पर अब यह मान्यता बदल चुकी है। वैज्ञानिक खोजो और प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि "एटम" उद्युत्कण, नियत्कण और विद्युत्कणप्रोट्रोन, यूट्रोन लौर इलेक्ट्रोन का एक पिण्ड है । इनर विपरीत परमाण वह मूल पाण है जो दूसरो को मेल के विना अपना स्वतय अस्तित्व बनाए हुए है। विमान-सम्मत अणु वास्तविक अणु नही है । जन मान्यता के अनुसार उसे प्यावहारिक अप पहा जग सरता है। ० परमाणु मे कोई एक रस, एक गघ, एक वर्ण नोर दो स्पर्श होते . परमाणु ने रतित्व का दोघ उसके द्वारा निर्मित पुद्गल स्कघ रूप कार्य में ही होता है। • वह इतना सूक्ष्म है कि उसरे नादि, मध्य और वन्त का
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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