SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मात्र वोर मोक्ष के उपाय विति । सपाप-प्रवत्तियो का आशिव न्याग देश विरति और जीवन मर पपिए सपूर्ण त्याग सर्व विरति है । विरति सवर अविरति आस्रव का प्रतिपक्षी है। अप्रमाद सवर-आत्म-विकास के प्रति जागरूक भार अप्रमाद मकर है। इस स्थिति में पहुंचने के पश्चात् व्यक्ति पापकारी प्रवृत्ति नहीं कर गाता । यह प्रमाद आश्रव का प्रतिपक्षी है। अपाय सवर क्रोध, मा, माया बोर लोम का निराध करना जापाय गवर है। वमे राग-द्वेषात्मक उत्ताप जितना कम होता है, उतना ही कपाय कम होता है। पर अकपाय सवर फलित होता है पपायर मर्वचा ताण होन से । यह उपाय आनव का प्रतिपक्षी है। अयोग-सवर योग या अय है प्रवृत्ति । प्रवृत्ति या निरोध करना अयोग मवर है । प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है -शुभ योर नशुम । नगम प्रवृत्ति का पूर्ण निरोध व्रत (विरति) मवर है। शुभ प्रवृत्ति का गपूण निगेध योग मपर है । जव नक चोरी का मपूर्ण निरोध नही होगा, उम योग-गपम को अयोग सपर का नमूग माना जाता है । जयोग वर की म्पिनि मे पहन जाने में तत्काल बाद जीव मुक्त हो जाता है। इन पान सवरो मे पहने सम्यक्त्व म पर सोना', फिर विति होती है। उसके पश्चात् प्रमग अप्रमाद, जरुपाय और प्रयोग की स्थिति उपलब्ध होती है। वैसे सबर में जय प्रकार बनाये गए है, पर वे विभिन्न विरक्षाको में आधार पर वर्णित हैं। सबरोबील भेद भी काफी प्रसिर । मामान्यन उसका समावेग एन पाच भेदो मे हो जाता है। निर्जरा - "तपना पमविच्देशादात्मनं मल्य निर्जरा । तपस्या दाग कम -मल का दिन्देवाने ने जो जात्मा पी चिनदि, उज्यमा होगे है, उसे गास्त्रीय भाषा मे निजरा मरते हैं। निजरा रा कान पाय हैतप । गलिए तप को भी निर्जरा यहते है । जैन नाधना या विस्तार तर है जापार परहना है । लपवारहप्रकार है। इसलिए उन माधना-पान पो "हा नोयाग' भी कहते रनिरा तपापलिजन र घी भाति मिजंगनी बारह प्रचार १ मा मारधिन या शिदधिर जाहा-परिवार । २ कोदरी नामा पत पुरानो मामला जनानी है ।म पान-पार दानो मनितिमी भोग-मान पालीकरण गरी तप । भिसापरी दूर मfram . दिन KITर विगारे द्वारा भारत दरि-17 - मोटि
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy