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________________ मोक्ष और मोक्ष के उपाय दात्मनः स्वरूपावस्य जैन-धर्म और मोक्ष जैन-धर्म का लक्ष्य है-मोक्ष । यही है जैन साधना का गन्तव्य जिगर । कृत्स्नफर्मक्षयादात्मनः स्वरूपावस्थान मोक्षः । -० सि० वी० ५/१९ समस्त कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होने पर आत्मा अपने ज्ञानदर्शनमय स्वरूप में अवस्पित होती है, उसका नाम मोक्ष है। दूसरे शब्दो में बद्ध आत्मा का मुक्त होना ही मोक्ष है । इस दृष्टि से मुक्त आत्मा और मोक्ष भिग्न नहीं है । जिस अवस्था मे कमं-पुद्गलो का ग्रहण रुक जाता है और गृहीत फों का सपूर्ण क्षय हो जाता है, वही मोक्ष है। जैन-दर्शन के अनुसार आत्मा अपने कारणो मे ही वन्धती है और अपने कारणो मे ही मुक्त होती है। दूसरा कोई भी उसे बांधने वाला या मुक्त करने वाला नहीं है । ___आत्मा और पार्म का सम्बन्ध अनादिकालीन है, फिर भी उचित उपायो द्वारा उस सबंध पा भी बत हो सकता है। जैसे धातु-मोधन पी प्रक्रिया से धातु और मिट्टी बलग-अलग हो जाते हैं, वैगे ही अध्यात्मसाधना की विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा आत्मा कर्म-बन्धन से मुक्त हो जाती है। जैन सिद्धात वी भाषा मे मुक्त नात्मानो को सिद्ध पहते हैं। मिद भगवान् फो बुद्ध, मुक्त, परमात्मा, परमेश्वर या ईश्वर नाम से भी अभिह्नि विरा जाता है । सिद्धारमाए बनन्त हैं । इसीलिए जन-दर्शन एकश्वरवाद को रवीर नहीं परता। कर्म-मुक्त होते ही आत्माए लोरान-लोपा-जीपं तक पहब जाती ।। पही उनका रणयो निवास होता है। उनके निवास-स्पल को मिद्ध-मिता परते हैं । उनका दूसरा नाम है ---"पित्यागभारापृथ्वी ।' मन-प्रमण या हेतु है-राग-द्वेष । मुत्तारमानो में गग-पगमूद नष्ट हो जाते हैं, तोलिए उनका पुनर्जन्म नहीं होता। ये पुनमंत्री हैं । मोह में मन, वाणी नौर पमं नहीं है। पेट मनीर में होते है। मिस गोरी है, इसीलिए भरा है। मोटर मे जामा मच्चिदानन्द स्वरूप हो गती है। दर लामा को दस्ता है। मुद-दुघ, गम-सलाम, म-मृत्ल, दिउ?
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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