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________________ जैनधर्म . जीवन और जगत् वैज्ञानिक "वाइटल बॉडी" बायो इलेक्ट्रीकल प्लाज्मा कहते हैं । सीधी भाषा मे कहें तो यह विद्युतीय शरीर है । ऊर्जा का अपार भडार है। वैज्ञानिक आकडे बताते हैं कि मनुष्य-जीवन को सचालित करने के लिए जितनी प्रवृत्तिया होती हैं, उन प्रवृत्तियो मे जितनी विद्युत् या ऊर्जा खपती है, उससे एक बडी कपडे की मील चलाई जा सकती है। एक बच्चे की शारीरिक क्रियाओ मे जितनी विद्युत् खपती है उससे रेल का इजन चलाया जा सकता है । __ मनुष्य-शरीर की प्रत्येक कोशिका में अपना स्वतत्र "पावर-हाऊस" है, जहा विद्युत्-ऊर्जा उत्पन्न होती है । उसी से पूरा शरीर-तत्र सक्रिय रहता सूरज, वायु तथा अनन्त आकाश में व्याप्त सूक्ष्म तरगो से भी निरन्तर ऊर्जा मिलती रहती है। उससे भी तेजस् शरीर पुष्ट होता रहता प्राण-वायु ऑक्सीजन शरीर के भीतर जाकर कोशिकाओ को ऊर्जा प्रदान करती है। इससे तैजस शरीर भी प्रभावित होता है । प्राणमय कोष को निर्मल और पारदर्शी बनाने के लिए प्राण को साधना आवश्यक है। ऐसा योग के आचार्यों का अभिमत है। ____ मत्र-जप प्राणायाम और दीर्घ श्वास के अभ्यास से तैजस शरीर को प्रभावित कर उसमे छिपी अनन्त शक्ति को उजागर किया जा सकता है। विचार-तन्त्र और आभा-मण्डल को भी प्रभावित किया जा सकता है। कार्मण शरीर ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के पुद्गल-समूह से निर्मित शरीर कार्मण शरीर या कर्म-शरीर है। यह पूर्ववर्ती औदारिक आदि चारो शरीरो का कारण है, इस दृष्टि से इसे "कारण शरीर" भी कहा जाता है । यह सूक्ष्मतम शरीर है । इसके बिना स्थूल शरीर का निर्माण सभव नही । कार्मण शरीर के माध्यम से ही आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करती है या दूसरे शरीर का निर्माण करती है। औदारिक शरीर जन्म सबधी है । वैक्रिय शरीर जन्म सबधी भी है (देवो और नारको के) और लब्धिजन्य भी । आहारक शरीर योग-शक्तिजनित ही होता है । ये तीनो शरीर स्थूल हैं, अवयवी हैं । तैजस और कार्मण सूक्ष्म शरीर हैं । मृत्यु के बाद भी जीव के साथ रहते हैं । ससारी आत्माओ के दो या तीन शरीर सदा रहते हैं। कुछ आत्माओ मे पाचो शरीरों के निर्माण की क्षमता रहती है। कम से कम दो शरीर- तैजस और कार्मण तो प्रत्येक ससारी आत्मा के साथ रहते ही हैं। इनका आत्मा के साथ अनादि सम्बन्ध है। इन दोनों शरीरो के छूटते
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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