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________________ ३६ जैनधर्म . जीवन और जगत् लिये तथा व्यक्तियो के आने-जाने के लिए द्वार, जाली झरोखे तथा खिडकिया रखी जाती हैं, वैसे ही चेतना की रश्मियो के निर्गमन तथा प्रकटीकरण के माध्यम हैं-इन्द्रिया, श्वासोच्छ्वास तथा भाषा पर्याप्ति । मकान बनाने के बाद मकान-मालिक उसका उपयोग आवश्यकता और मौसम के अनुसार करता है। जैसे सर्दी मे निवाये कमरो का तथा गर्मी मे ठडे-हवादार कमरो का । खिडकियो को कब खोलेगा, कब बन्द करनायह सब भी उसकी उपयोगिता पर निर्भर करता है। इसी प्रकार कब क्या करना है, कैसे करना है, यह सब शक्ति मन पर्याप्ति सापेक्ष है। ये छह पर्याप्तिया स्थूल शरीर के छह शक्ति-स्रोत हैं और तेजस शरीर के सवादी केन्द्र हैं। इनके माध्यम से ही प्राण के परमाणुओं का आकर्षण, परिणमन और उत्सर्जन होता है। इसका रेखाकन इस प्रकार है - श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति - - इन्द्रिय पर्याप्ति शरीर पर्याप्ति भाषा पर्याप्ति - - आहारपर्याप्ति मन पर्याप्ति शरीर मे पर्याप्तियों का स्थान :पर्याप्ति स्थान आहार पर्याप्ति स्वास्थ्य केन्द्र, शक्ति-वेन्द्र शरीर पर्याप्ति नाभि-तेजस केन्द्र
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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