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________________ १४८ जैनदर्शन . जीवन और जगत् दूसरी वाचना ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के मध्य मे श्रुत-सुरक्षा का एक और प्रयत्न हुआ था कलिंगाधिपति जैन सम्राट खारवेल के युग मे । हिमवत स्थविरावली के अनुसार सम्राट् खारवेल ने कुमारी पर्वत पर एक वृहत् श्रमणसम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन में आचार्य महागिरि की परपरा के बलिस्सह, बौद्धलिंग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य आदि दो सौ जिनकल्प तुल्य साधना करने वाले श्रमण एवं आर्य सुस्थित, आयं सुप्रतिबुद्ध, उमास्वाति, श्यामाचार्य आदि तीन सौ स्थविरकल्पी श्रमण सम्मिलित हुए थे। आर्या पोइणी आदि तीन सौ साध्विया, भिक्ख गय, चूर्णक, तेलक आदि छह सौ श्रावक तथा पूर्णमिश्रा आदि छह सौ श्राविकाए भी सम्मिलित थी। उक्त वृहत् सम्मेलन मे साध्वियो और श्राविकाओ की भागीदारी जैन शासन मे नारी-जाति की प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक दस्तावेज है । इस अवसर पर श्रुत-स्वाध्याय और श्रुत-स्थिरीकरण के अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो का निर्माण भी हुआ। श्यामाचार्य ने पन्नवणा सूत्र की, उमास्वति ने तत्त्वार्थ सूत्र की और स्थविर आर्य बलिस्सह ने अगविद्या प्रति शास्त्रो की रचना की। इस प्रकार सम्राट् खारवेल ने प्रचार-प्रसार, श्रुत-सरक्षण आदि दृष्टियो से जन-धर्म की अद्वितीय सेवा की। जैनधर्म को व्यापक बनाने मे अपनी सत्ता और शक्ति का भरपूर उपयोग किया। सम्राट् खारवेल को उसके कार्यों की प्रशस्ति के रूप मे धम्मराज, भिक्खु राज, खेमराज आदि सम्मान-सूचक शब्दो से सम्मानित किया गया । चक्रवर्ती खारवेल जैन-धर्म का अनन्य उपासक था । उसके सुप्रसिद्ध हाथीगुम्फा अभिलेख से भी यह उपलब्ध होता है कि उसने उडीसा के कुमारी पर्वत पर जैन श्रमणो का एक सघ बुलाया और मौर्यकाल मे जो अग विच्छिन्न हो गए थे उन्हे उपलब्ध कराया। कलिंग-चक्रवर्ती सम्राट खारवेल का शासनकाल वी नि ३०० से ३३० माना गया है, अत उक्त श्रमण-सम्मेलन भी इसी अवधि मे सपन्न हुआ या, ऐसा इतिहासविज्ञो का अभिमत है । अनेक इतिहासकारो ने इस सम्मेलन को वाचना का दर्जा नही दिया है, फिर भी इसकी गरिमा और मूल्यवत्ता किसी भी आगम-वाचना की तुलना मे कम नही है । तीसरी और चौथी वाचना ये दोनो वाचनाए वी. नि ८२७ से ८४० के मध्य हई । इस काला
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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