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________________ बनदर्शन में पारमयाद में उसया भग्नित्य पा, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा । मात्मा कभी अनात्मा (जस) नहीं होगी । मगर ये एट जाने पर भी मृत्यु नही हाती । यह मजन्मा है, नित्य है, माश्या है। द्रव्य मी पिट में शास्वत और अविभाज्य होते हुए भी पर्याय की अष्टि में भारमा परिननमोल बोर बनेका हो जाती है । यह परिवर्तनशीलता ही भाप मारमा । । द्रव्य बोर भार की विवक्षा मे खात्मा के साठ भेद हो जाने, जंगे-चेनना पस स्वम्प द्रव्य भात्मा है । ग्रोध, मान, माया ओर मोम में जिन होने पर यह कपाय बात्मा बन जाती है। आत्मा की पचना, प्रति योग आत्मा है । बान्मा या चैतन्य स्वरूप में च्यापन होना उपयोग मारमा है । शात्मक और दगनारमया चेतना मान-आत्मा और दर्शन-नामा । भात्मा पी लिमिट गयममय अवस्था परिय नात्मा है। जात्मा की गति पीपं जात्मा है । ये आठ आत्माए नापेक्ष दृष्टि में बताई गई। पारलर मे आत्मा को जिनगी पर्याय ~अवम्पाए हैं, ये सब भाव बारमा म प्टि मे बान्मा बनन्त हो सरती है । संतांतिक भाषा में इन पाठ थापा निरिन, जात्मा को भी अवस्थाओ को अन्य (अनेरी) बारमा वा जाता है। जर-दन ये गार समारी वा मा राग-द्वेष मूतक प्रवृत्ति पे गरण फर्मों या धन ली। मंबद्ध जीर नाना योनियों में परिभ्रमण गरणाचा, पगनिमार गुग-युग का नया परता है । गग-द्वेष क्षीण पर नागापमं-कहो जाती है।मक बात्मा निर्यात प्राप्त कर आमसाप में प्रतिष्टितो जाती है । मुल लारमाए मान हैं। उन नव या रपतन परिताप पर भव-मण नही करती। जामदादी दर्शनों का पगादेय मोर-प्राप्ति है। मे ग गाई भी की मृत गाना रिमास्त्रीय प्रमाणो जपदा भाषा मा ताबा जनुना नी मदता । उमरे लिए नामnि anकामोशी सादाना है। बारमा पी मोज नाम निपद में महा "र, पच जोर दिदा गो गोल गरी । पार पहावीर मेंहा -. 'मपिता RATA-T I Rो। अात्मा परमामाको Frer gratगा , हमारा भाम-पति और ET TET नि। मंद . . । - सना औरण। Fre.free
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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