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________________ लाया हुश्रा विधान क्या फल भोगने के लिए कम है ? हां तो सातवें नरक के नारकी जीवन भर मार काट करते हैं और उनका पाप यहाँ तक बढ़ जाता है कि नियम से उन्हें तिर्यश्च गति में ही जाना पड़ता है और फिर नियम से उन्हें नरक में ही लोटना पडता है । ऐन पापियों में भी सम्यक्त्व कुछ कम तेतीस सागर अर्थात पर्याप्त होने के बाद से मरण के कुछ समय पहिले नक सदा रह सकता है । वह "सम्यक्त्व विधवाविवाह करने वाले के नही रह सकना"! बलिहारी है इस समझदारी की। आक्षेप (ई)-नारकियोंके सप्त व्यसन की सामग्री नहीं है जिससे कि उनके सम्यक्त न हो और होकर भी छूट जावे। अतः यह मातवे नरक का दृष्टांत विधवाविवाह के विषय में कुछ भी मल्य नहीं रखता । ममाधान-श्राक्षेपक के कहनसे यह तात्पर्य निकलता है कि अगर नरकों में सप्त व्यसन की सामग्री होती तो सम्य. कत्व न होता और छट जाता (नष्ट होजाता)। वहां सप्त व्यसन की सामग्री नहीं है। इसलिए सम्यक्त्व होता है और होकर के नहीं छूटता है ( नष्ट नहीं होता है ) । नरक में सम्यक्त्व के नष्ट न होने की बात जब हमने कही थी, तब श्राप बिगड़े थे। यहाँ वही वान आपने स्वीकार कर ली है । कैसी अद्भत सत. र्कता है ! सातवे नरक के दृष्टांत से यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है कि जब परम कृष्ण लेश्या वाला क र कर्मा, घोर पापी नारकी सम्यक्त्वी रह सकता है तो विधवा-विवाह वाला- जो कि श्ररणुव्रती भी हो सकता है--सम्यक्त्वी क्यों नहीं रह सकता? आक्षेप ( 3 )-पाँचों पापों में एक है संकल्पी हिंसा,
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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