SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५५ ) वह श्रादर्श नष्ट न हो जावेगा ? श्रादर्श बने रहने पर उन्नति के शिखर से गिर पड़ने पर भी उन्नति हो सकती है, परन्तु श्रादर्श के नष्ट होजाने पर उन्नति की बात ही उड़ जायगी। सम्पादकजी ! मैं धर्मके विषय में तो कुछ समझती नहीं हूँ। न बालकी खाल निकालने वाली युक्तियाँ ही दे सकती हूँ । सम्भव है सव्यसाची सरीखे लेखकों की कृपा से विधवा विवाह धर्मानुकुल ही सिद्ध हो जाय, परन्तु मेरे हृदय की जो श्रावाज़ है वह मैं श्रापके पास भेजती हूँ और अन्त में यह कह देना भी उचित समझती हूँ कि शास्त्रों में जो आठ प्रकार के विवाह कहे है उनमें भी विधवाविवाह का नाम नहीं है। श्राशा है सव्यसाचीजी हमारी बातों का समुचित उत्तर देंगे। आपकी भगिनी-कल्याणी । कल्याणी के पत्र का उत्तर । ( लेखक-श्रीयुत 'सव्यसाची' ) बहिन कल्याणी देवीने एक पत्र लिखकर मेरा बड़ा उपकार किया है । वैरिस्टर साहिब के प्रश्नों का उत्तर देते समय मुझे कई बातें छोड़नी पड़ी है। बहिन ने उनमें से कई बातों का उल्लेख कर दिया है । आशा है इससे विधवाविवाह की सचाई पर और भी अधिक प्रकाश पड़ेगा। पहिली बात के उत्तर में में निवेदन करना चाहता हूँ कि विधवाविवाह से स्त्रियों को गुलाम नहीं बनाया जाताहै। हमारे ख़याल से जो विधवाएँ ब्रह्मचर्य नहीं पाल सकतीं उनके लिये पतिके साथ रहना गुलामी का जीवन नहीं है । क्या सधवा जीवन को स्त्रियाँ गुलामी का जीवन समझती है ? यदि हां, तो
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy