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________________ ( ४० ) सोमसेन ने गालव ऋषि का मत उद्धृत करके उसका खण्डन करना तो दूर, अपनी असम्मति तक ज़ाहिर नहीं की । इससे साफ़ मालूम होता है कि सोमसेन विधवा-विवाह के पक्ष में थे, अथवा विपक्ष में नहीं थे । अन्यथा उन्हें गालवऋषि के मनको उद्धृत करने की क्या ज़रूरत थी ? और अगर किया था तो उसका विरोध तो करते। इससे एक यान और मालम होती है कि हिन्दू लोगों में कलिकाल में पुनर्विवाह वर्जनीय है मां भी, किसी किसी के मत से नहीं है ) लेकिन पहिले युगों में पुनर्विवाह वर्जनीय नहीं था। श्रीमान पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार ने जैन जगत् के १८ व अङ्क में पराशर,वसिष्ठ,मनु,याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों के वाक्य देकर हिन्दू-धर्मशास्त्रों में स्त्री-पुनर्विवाह को बड़े अकाट्य प्रमाणों से सिद्ध किया है । जो लोग “न मृत प्रव्रजिते क्लीवे च पतिते पतौ । पञ्चम्वापन्सुनारीणां पतिरन्यो विधीयते" इस श्लोक में पतौ का अपतो अर्थ करते हैं वे बड़ी भूल में है । अमितगति प्राचार्य ने इस श्लोक को विधवा-विवाह के समर्थन में उद्धृत किया है। वेद में पति शब्द के पतये आदि रूप बीसों जगह मिलते हैं। मुख्तार साहिब ने व्याकरण श्रादि के प्रकरणों का उल्लेख करके भी इस बात को सिद्ध किया है। हितोपदेश का निम्नलिखित श्लोक भी इसी बात को सिद्ध करता है--- 'शशिनीव हिमाानाम् धर्मार्तानाम् रवाविव । मनोन रमते स्त्रीणां जराजीणेन्द्रिये पतौ' ॥ शान्तिपुराण में भी 'पतेः' ऐसा प्रयोग मिलता है। हिन्दू-धर्मशास्त्रों से विधवा-विवाह के पोषण में बहुत ही
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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