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________________ विधवाओं और उनके संरक्षकों से अपील इक्कीम करोड़ की हिन्दू जाति की आबादी में जब २ दो करोड़ से अधिक विधवाएं है तब ११।। साढे ग्यारह लाख की जैन संख्या में १॥ लाख विधवाएं हैं जब कि बिधुर मात्र ६५ हजार है । परन्तु कुमारे पुरुष ३ लाख है और कुमारी स्त्रियां १८५०८० अथात् दो लाग्य में कम है । जो जैन समाज को मरने से बचाना चाहने र उनको सन १६५१ की जैन मर्दुम शुमारी की रिगट को भलो प्रकार पट डालना चाहिये । उससे साफ विदित हो जायगा कि जैन लोग जो ८००० आठ हजार प्रति वर घट रहे हैं इसका बड़ा भारी कारण यह है कि जैन जानि में कुमारियों की संख्या कम होने पर भी उनका विवाह कुमागें और विधगं से करना होता है । पापा का प्रभाव होने में वह जिस तरह बनना है एक दफे विवाह के पीछे स्त्री के मरने पर इमरी दर कुमारी कन्या को विवाह ले। है । यदि कदाचित यह सी भी मर गई तो तीमर्ग दरे फिर अपनी पत्री व पोती के समान किमी कुमारी को ज्याद लेते हैं। किसी २ पम्प को जीवन में ६ या ७ दर कुमारी को विवाहने का प्रसंग जाता है । इस प्रकारकी व्यवस्था का कडुवा फल यह होता है कि बहुतमी जवान विधवायें जो बड़ी उमके पुरुपों को विवाह दी जानी हैं अपने पतिके मरने पर
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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