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________________ ( ८ ) अत: सिद्ध होगया कि “विधवा विवाह" व्यभिचार नहीं है। यह कहना, कि "विधवा विवाह" में भिचार की निवृत्ति नहीं हो सकती, ऐसा ही सत्य है जैसा कि यह कहना कि सूर्य में अन्धकार का विनाश नहीं हो सकता, सत्य है ! “विधवाविवाह का प्राशय विधवा का इत्वरिका व व्यभिचारिणी होने से बचाना है उसको गृहस्थ श्राविका के अणुव्रत में रखकर उसका स्थिति करण करना है। ___ विधघा का विवाह करके उसको गृहस्थ श्राविका के अणुबत में रखकर उसका स्थिति करण करना किसी प्रकार भी व्यभिचार नहीं कहा जा सकता। विधवा को जबरदस्ती पंधव्य पलवाना व्यभिचार है। हमारे विराधी मित्र इसम बच हुयं नहीं हैं। व विधवा विवाह' का विरोध करके बेचारी असमर्थ विधवाश्राम जबरदस्ती वैधव्य पलवाकर उन्हें व्यभिचारिणी बना देते हैं. जो कि 'यभिचार' में भी बढ़कर व्यभिचार है । बस ! यदि हम विधवाविवाह" के विरोधियों को .. कहें तो कुछ भी अयुक्ति न होगी। उपरोक विवेचन में ज्ञान हुआ कि “विधवा विवाह"और "व्यभिचार" में केवल इतना ही अन्तर है जितना अन्तर "ब्रह्मचर्य" व "न्यभिचार" में है अर्थात "विधवाविवाह" इतना ही बड़ा व्यभिचार ( पाप । है जितना बड़ा व्यभिचार कुमारी-विवाह" है। २. क्या कारण है कि पुराणों में "विधवाविवाह" का उल्लेख नहीं मिलता। "विधवा विवाह" पर हमारं कृपमगडूक मित्र यह आक्षेप भी करते है कि "शास्त्रों में कुमारी विवाहका तो वर्णन प्राता
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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