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________________ ( २६ ) क्या ऐसे अपमानजनक शब्द लिखे जाते ? व्रती के आगे अवती को क्यी शोभा का कारण कहा जाता ? वैधव्य दीक्षा से दीक्षित महिलाए तो सौभाग्यवती और सौभाग्यवानों से भी पूज्य है । गृहस्थाश्रम में वे वीतरागता की एक किरण हैं । परन्तु उनको इतना मूल्य तो तब मिले जब समाज में विधवा विवाह का प्रचार हो । तभी उनके त्याग का मूल्य है । जो वस्तु ज़बर्दम्ती छिन गई, जिसके ऊपर अधिकार ही नहीं रहा, उसका त्याग ही क्या ? कहा जा सका है कि 'देवी आपत्ति पर कौन विजय प्राप्त कर सकता है ? प्लेग, इन्पनुऐंजा श्रादि से मनुष्य क्षति हो जाती है, वहाँ क्या किसी के हाथ की बात है ? ऐसी बात करने वालो से हम पूछते हैं कि बीमारी हो जाने पर आप चिकित्मा करते हैं या नहीं ? अगर दैव पर कुछ वश नहीं है तो औषधालय क्यों खुलवाये जाते हैं ? दैव के उदय से कंगाल हो कर भी लोग अर्थोपार्जन की चेष्टा क्यों करते हैं ? दैव के उदय से तो सब कुछ होता है, फिर पुरुषार्थ की कुछ ज़रूरत है या नहीं? तथा यह बात भी विचारणीय है कि देव के द्वारा जैसे विधवाएँ बनती हैं। उसी प्रकार विधुर भी बनते हैं । विधुगे के लिये तो दैव का विचार नहीं किया जाता है और विधवाओं के लिये किया जाता हैयह अन्धेर क्यों ? यदि कहा जाय कि विधुरपन की चिकित्सा भी देव के उदय से होती है तो विधवापन की चिकित्साभी देव के उदय से हो जायगी और होने लगी है। मनुष्य को उद्योग करना चाहिये, अगर सफल हो जाय तो ठीक है। अगर सफलता न होगी तो क्या दोष है? "यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोऽत्र दोषः"
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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