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________________ ( २७ ) सन्तान अल्पायु या रोगी होगी अथवा गर्भ स्थायी न रहेगा। बहुत से लोग यह समझते हैं कि स्त्री को पुष्पवति हो जाने से ही गर्भाधान की पूर्ण योग्यता प्राप्त हो जाती है। लेकिन प्राकृतिक नियम इसके बिलकुल विपरीत है। अंड, पोपइया श्रादि फलो के वृक्षोंमें जब पुष्प अाते हैं हो चतुर माली उन्हें निष्फल ही झड़ा देता है । कोकि अगर ऐसा न किया जाय ता फल बहुत छोटे, बेस्वाद और रही होते हैं । श्राम के वृक्ष में अगर सब फूलों के आम बनने लगे तो आम बिलकुल रद्दी होंगे,उनका श्राकार गई के दाने से शायद ही बड़ा हो सके । इसलिये प्रकृति फी सदी ६ पुष्पों को निष्फल झड़ादेती है । तब कहीं अच्छे ग्राम पैदा होते हैं । सभी वृक्षों के विषय में यह नियम है कि अगर आप उनसे अच्छा फल लेना चाहते हैं तो प्रारम्भ के पुष्पों को फल न बनने दीजिये और मात्रा से अधिक फल न लगने दीजिये । नारी के विषय में भी यही बात है। वहाँ भी रजोदर्शन के बाद तुरन्त ही गर्भाधान के साधन न मिलना चाहिये, अन्यथा मृत्यु आदि की पूरी सम्भावना है। कहा जा सकता है-मृत्यु भले ही हो, परंतु उसका पाप नहीं लग सकता । लेकिन यह बात ठीक नहीं है, क्योंकि यन्ना. चार न करने से प्रमाद होता है और 'प्रमत्त यांगान प्राणव्य. परोपणं हिंसा' इस मूत्र के अनुसार वहाँ हिंसा भी है। जब हम जानते हैं कि ऐसा करने से हिमा हो जायगी, फिर भी हम वही काम करें तो इससे हिंसा का अभिप्राय, अथवा हिंसा होने से लापर्वाही सिद्ध होती है जो कि पापबंध का कारण है । घरमें स्त्रियों को यह शिक्षा दी जाती है कि पानी को ढककर रक्खा करो, नहीं तो कीड़े मकोड़े गिर कर मर
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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