SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म के उदय से होती हैं, उसी प्रकार क्या विधुर पाप कर्म के उदय से नहीं होते ? फिर लोगों ने जब विधुरपन मिटाने का इलाज उचित समझा है तब वेधन्य मिटाने का इलाज उचित क्यों नहीं समझा जाय । ज्ञानावरण कर्म के उदय से मनुष्य अज्ञानी होता है तब शिक्षा का प्रबन्ध कयों नहीं किया जाता है। निर्बल को सबल क्यों बनाया जाता है ? हम पूछते हैं कि कर्मों के उदय को सफल बनाने का क्या विरोधियों ने ठेका ले रक्खा है ? तब तो स्त्री वेद के उदय को सफल बनाने के लिये विधवा का विवाह करना अत्यन्त आवश्यक है । ज़रा और भी विचार कीजिये । यदि असाता वेदनीय आदि के उदय को सफल बनाना आवश्यक है, तब आपके घर में यदि कोई बीमार पड़ जाय तव भूल करके भी उसका इलाज न करना चाहिये । पाप कर्म के उदय को सहकर कर्मों की निर्जग करने का अवकाश देना चाहिये । जो लोग रोगियों की चिकित्सा करते हैं वे वैसे ही पापी हैं, जैसे विधवाविवाह के प्रचारक । अगर पाठशाला खोलने वाले, श्राहार दान देने वाले, औषधालय खोलने वाले, परिचर्या करने वाले तथा अन्य तरह की आपत्तियों को दूर करने वाले अच्छे हैं--पाप कर्म के उदय को भोग कर कर्मों की निर्जग करने का अवकाश छीनने का पाप उन्हें नहीं लगता-तव विधवाविवाह के प्रचारक भी दोषी नहीं कहे जा सकते। __असली बात तो यह है कि अगर पापकर्म के उदय से मनुष्य को कोई दुःख उठाना पड़े तो उसे सहना चाहिये । परन्तु दूसरों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे पापकर्म के उदय को स्थिर रखने की कोशिश करें और उसे ज़बर्दस्ती सहन करने के लिये वाध्य करें। उस पुरुष को भी सहन करने का ढोंग नहीं करना चाहिये । अाज समाज में ऐसी कितनी
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy