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________________ विधवा विवाह [ लेखक - एक " सव्यसाची" ] विधवा विवाह के विषय में इस समय काफी चर्चा चल रही है। विधवा विवाह के प्रचारकों का कहना है कि इससे धर्म में विशेष हानि नहीं है और वर्तमान अवस्था को देखते हुए यह अत्यन्त आवश्यक है । विरोधी इसको हर तरह धर्म वि. रुद्ध कहते हैं, महापातक समझते हैं और उन्हें इस बात का दुख है कि विधवा विवाह प्रचारकों को भेजने के लिये आठवां नरक क्यों नहीं है ? र ! पर सामाजिक दृष्टि से विधवा विवाह कैसा है इस विषय मैं इस लेख में विशेष विचार न करूंगा। मुझे तां धार्मिक दृष्टि से इस विषय पर विचार करना है । यद्यपि मैं पंडित नहीं हूँ फिर भी थोड़ी सी संस्कृत जानता हूँ । धर्म शास्त्रों का भी स्वाध्याय किया है । विद्वानों की मङ्गति का भी सौभाग्य मिला है। इससे मेरी इच्छा हुई कि इस विषय पर मैं भी कुछ अपने विचार प्रगट करू । बड़े बड़े विद्वानों के बीच में मुझ सरीखे क्षुद्र व्यक्ति के पड़ने की ज़रूरत तो नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार की धृष्टता है, फिर भी समय ऐसा आगया है कि चुप रहना भी बड़े साहस का काम 1 मेरे विचार से विधवा विवाह धर्म विरुद्ध अथवा पाप
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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