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________________ ( २१६) रसना इन्द्रिय के विषय में ही उच्छिष्ट अनुच्छिष्ट का व्यवहार किया जाय तो कन्याको हम उच्छिष्ट नहीं कह सकते, क्योंकि वह चबाने खाने की वस्तु नहीं है, जिससे वह जूठे दुधके समान समझी जाय। उन्तीसवाँ प्रश्न । "त्रैवर्णिकाचार से तलाक के रिवाज का समर्थन होता है। यह बात हमने संक्षेप में सिद्ध की थी। परन्तु ये दोनों आक्षेपक कहते हैं कि उसमें तलाक की बात नहीं है। भले ही तलाक या (Divorce ) आदि प्रचलित भाषाओं के शब्द उस ग्रन्थ में न हो परन्तु वैवाहिक सम्बन्ध के त्याग का विधान अवश्य है और इसी को तलाक कहते हैं अप्रजां दशमे वर्षे स्त्री प्रजां द्वादशे त्यजेत् । मृतप्रजां पंचदशे सद्यम्त्वप्रियवादिनीम् ॥११-१६७॥ व्याधिता स्त्रीप्रजा वन्ध्या उन्मत्ता विगतातंया ।। अदुष्टा लभते त्यागं नोर्थता न तु धर्मतः ॥११-१६८॥ अगर दस वर्ष तक कोई संतान न हो तो दसवें वर्षमें, अगर कन्याएँ ही पैदा होती हो तो बारहवें वर्षमें. अगर संतान जीवित न रहती हो तो १५वे वर्ष में स्त्री को छोड़ देना चाहिय और कठोर भाषिणी हो ता तुरन्त छोड़ देना चाहिये ।। १६७।। गगिणी, जिसके केवल कन्याएँ ही पैदा होती हो, अध्या, पागल, जो रजस्वला न होती हो ऐसी स्त्री अगर दुष्ट न हो तो उसके साथ संभोग का ही त्याग करना चाहिए; बाकी पत्नीत्व का व्यवहार रखना चाहिए ।। १६८ ।। इससे मालूम होता है कि १६७ वें श्लोक में जो त्याग बनलाया है उसमें स्त्री का पत्तीत्व सम्बन्ध भी अलग कर दिया गया है। यह तलाक नहीं तो क्या है ?
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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