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________________ हमकोष में भी पता शब्द का प्रपोग हुआ है । 'धध धृत नरे पत्तो । यहाँ पर धव और पति शब्द का पर्यायवाची कहा है और पति शब्दका पती रूप लिखा है। ___यास स्मृति में भी पनय प्रयोग है । 'दासीवादिष्ट. कार्येष भार्या भर्तः सदा भवेत् । ततांनसाधनं कृत्वा पनये विनिवंद्य तत् ॥ २-२७॥ ___ यहाँ पतिके प्रति भार्याक कर्तव्य बतलाये हैं । यहाँ भी सगाई वाला पति अर्थ नहीं किया जा सकता है। शशिनीव हिमाानां घर्मानानां ग्वाविव । मना न रमते स्त्रीणां जग जीणेन्द्रिये पती॥ मित्रलाभ-हितोपदेश । इस श्लोक के अर्थ में अपनी निकालने की चेटा करके श्रीलालजी ने धोखा देने की चेणा की है । इतना ही नहीं यहाँ पर भी अपनी आदत के अनुमार उलटा चोर कोतवाल को डॉट की कहावत चारतार्थ की है। आप कहते हैं कि 'यहाँ भी सगाई वाले (अपति ) बढ़े दूल्हे की बात है। ताज्जुब यह है कि यहीं पर यह बात भी कहते जाते हैं कि विवाह तो १२-१६ की उम्र में हुआ होगा । जब विवाह के समय वर की उम्र प्राप १६ बतलाते हैं तब क्या वह जन्म भर ती पनि बना रहा और बुढ़ापे में भपति बन गया ? यलिहारी है इस कलाना की! खैर, जग यह भी देखिये कि श्लोक किस प्रकरण का है। कौशाम्बी में चन्दनदास सेठ रहता था। उसने बुढ़ापे में धन के बलसे लीलावती नाम की एक वणिकपुत्री से शादी करली, परन्तु लीलावती को उस बूढ़े से सन्तोष न हुआ। इस. लिये वह व्यभिचारिणी होकर गुप्त पाप करने लगी । इसी मौके पर यह श्लोक कहा गया है जिसमें 'पती' रूप का प्रयोग
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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