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________________ ( १६५ ) है क्योंकि वहाँ कुलशुद्धि का प्रभाव है । यदि उसी स्त्रो के यभिचारिणी होने के पहले स्वपति से कोई सन्तान हो तो वह सन्तति त्रिविध कर्मों का क्षय करने पर मुक्ति प्राप्त कर सकती है । । विद्यानन्द) __ ममाधान-कोई अपने वीर्य से पैदा हो जाय तो उसको व्यभिचारजानता नए नही हो जाती। कोई मनुष्य वंश्या के साथ व्यभिचार करे और शीघ्र ही मर कर अपने ही वीर्य से उमी वेश्या के गर्भ से उत्पन्न हो जाय तो क्या वह व्यभिचारजान न कहलायगा। विद्यानन्द का कहना है कि परपुरुषगामिनी होने के पहिल उत्पन्न हुई मन्तति को मोक्षाधि. कार है परन्तु सुष्टि की पत्नी ता उमर मरने के पहिले ही परपुरुषगामिनी हो चुकी थी। तब वह मांस क्यों गया ? निम्नलिखित श्लोकों से यह बात बिलकुल मिद्ध है कि वह पहिले ही व्यभिचारिणी हो गई थी वक्राख्यो दुधीस्तस्या गृहे छात्रः प्रवतते । तेन मा दुगनार मा कति स्म पापिना।" एकदा विमलायाश्च वाक्यतः सोऽपि वक्रकः । सुर्राण मारयामाम कुर्वन्तं कामसंबनम् ॥ ६॥ अर्थात विमला के घर में वक्र नाम का एक बदमाश छात्र रहता था, उस पापी के साथ वह व्यभिचार करती थी। एक दिन विमला के कहने में कामसेवन करते समय उम वक ने सुहाट का मार डाला। इससे मालूम होता है कि मुटि के मरने के पहिले उसकी स्त्री व्यभिचारिणी हो चुकी थी, मुष्टि अपनी व्यभिचारिणी स्त्री के गर्भ से पैदा होकर मोक्ष गया था। उनके लिये नजा पाना चाहिये जो हाड़ मांस में शुद्धि अशुद्धि का विचार करते हैं और जब उन विचागं की पुष्टि शास्त्रों से
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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