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________________ ( १६४ ) नहीं, तो वर्तमान का वैधव्य जीवन पुरायो गर्जक नहीं कहला सकता । अठारहवाँ प्रश्न इस प्रश्न में यह पूछा गया था कि जैनसमाज की सख्या घटने से समाज की हानि है या लाभ ? हमने संख्याघटी की बात का समर्थन करके समाज की हानि बतलाई थी। श्रीलाल तो गवर्नमेन्ट की रिपोर्ट का अस्तित्व ही स्वीकार नही करते । किम्वदन्ती के अनुसार कुम्भकर्ण ६ महीने सोता था, परन्तु हमारा यह प्रक्षेपक कुम्भकर्ण का भी कुम्भकर्ण निकला । यह जन्म से लेकर बुढापे तक सो ही रहा है। खैर, विद्यानन्द ने संख्याघटी की बात स्वीकार करती है। दोनों आक्षेपकों का कहना है कि संख्या घटती है घटने दो, जाति रसातल जाती हे जाने दो, परन्तु धर्म को बचाओ ! विधवाविवाह धर्म है कि अधर्म- इस बात की यहाँ चर्चा नहीं है। प्रश्न यह है कि संख्या घटने से हानि या नहीं ? यदि है तो उसे हटाना चाहिये या नहीं ? हरएक विचारशील आदमी कहेगा कि संख्याघटी रोकना चाहिये। जब विधवाविवाह धर्मानुकूल हैं और उससे सख्या बढ़ सकती है तो उस उपाय को काम में लाना चाहिये । आक्षेप ( क ) - जैनी लोग पापी होगये इसलिये उनकी सख्या घट रही है । समाधान- बात बिलकुल ठीक हे । सैकडों वर्षों से जैनियों में पुरुषत्व का मद बढ़ रहा है। इस समाज के पुरुष यतो पुनर्विवाह करते हैं, और स्त्रियों को रोकते हैं, यह अत्याचार, पक्षपात क्या कम पाप है ? इसी पाप के फल से इनकी संख्या घट रही है । पूजा न करने श्रादि से संख्या घटती तो म्लेच्छों की संख्या न बढ़ना चाहिये थी ।
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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