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________________ कुछ होश भी है कि श्राप ऊपर क्या कुछ लिख पाये हैं ? पहिल उमे जलाकर वाक कर डालो नब दूसरी बात कहना ! समाधान-हमने कहा था कि "यदि विवाह होने पर भी किन्हीं लोगों की कामवासना शान्त नहीं होती तो इससे विधवाविवाह का निषेत्र कैसे हो सकता है। फिर तो विवाह मात्र का निषेध होना चाहिये।'' पाठक देखें कि हमारा यह वक्तव्य क्या विवाह मार्ग को उड़ाने का है ? हम तो विधवा. विवाह और कुमागे विवाह दोनों के समर्थक है । परन्तु जो लोग जिम कारण से विधवाविवाह अनावश्यक समझते हैं, उन्हें उसी कारण से कुनागविवाह भी अनावश्यक मानना पड़ेगा। अमली बात तो यह है कि अगर किसी जगह विवाह (कुमारीविवाह या विधवाविवाह ) का फल न मिले तो क्या विवाहप्रया उड़ा देना चाहिये ? हमारा कहना है कि नहीं उड़ाना चाहिये। जब कि आक्षाक का कहना है कि उडा देना चाहिये, क्योंकि श्राक्ष पक न विधवाविवाह की प्रथा उड़ा देने के लिये उसकी निष्फलना का ज़िकर किया है । ऐसी निष्फलता कुमारी विवाह में भी हो सकती है, इसलिये आक्षेपक के कथनानुसार वह प्रथा मी रड़ा देने लायक ठहरी। पाक्षेप (त)---श्रादिपुगण, मागारधर्मामृत, पं० मेधावी, पं० उदयलालजी, शीतलप्रसादजी, दयाचन्द गोयलीय आदि ने पुत्रोत्पत्ति के लिये ही, विवाह कामभोग का विधान किया है, कामवासना की पूर्ति को कामुकता बनलाया है। समाधान-कामलालसा की पूर्ति कामुकता भले ही हो परन्तु कामलालसा की निवृत्ति काम कता नहीं है । स्वस्त्रीरमण को कामकना भले ही कहा जाय, परन्तु परस्त्रोत्याग कामकता नहीं है। यह कामलालसा की निवत्ति है। हमने शास्त्रप्रमाणों से सिद्ध कर दिया है कि पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रस
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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