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________________ ( १२७ ) आक्षेपक अपनी बहिन बेटियों के विवाह को कामभिक्षा समझता है ? यदि नहीं, नो विधवाओं के विवाह को काम. भिक्षा नहीं कह सकते । विधवाश्री का विवाह धर्मवृद्धि का कारण है, यह बात हम पहिले सिद्ध कर चुके है। आक्षेप ( 3 )-विवाह से कामतालसा घटनी है, इस का एक भी प्रमाण नहीं दिया । विवाह हाने पर भी कामलालसा नष्ट नहीं हुई, उल्टो बढ़ा है, जैसे गवणादिक की। (विद्यानन्द) समाधान-श्राबाल गोपाल प्रसिद्ध बातको शास्त्र प्रमाणों की ज़रूरत नहीं हाती। फिर भी प्रमाण चाहिये ना श्राशाधर जी के इन शब्दों पर ध्यान दीजिये कि अगर पुत्र पुत्री का विवाह न किया जायगा ना वे स्वच्छन्दचारी हो जायेंगे (दखा पाक्षप 'ङ') । विवाह से अगर कुलसमयलोकविरोधी यह म्वच्छन्दाचार घटता है तो यह क्या कामलालसा का घटना न कहलाया ? विवाह होने पर भी अगर किसी की काम. लालसा नष्ट नहीं होती तो इसके लिये हम कह चुके है कि उपाय १०० में दम जगह अमफल भी होता है। तीर्थङ्करों के उपदेश रहने पर भी अगर अभव्य का उद्धार न हो, सूर्य के रहने पर भी अगर उल्लू को न दिख नो इसमें नीर्थङ्कर की या सूर्य की उपयागिता नष्ट नहीं होती है। इसी तरह विवाह के हाने पर अगर किसी का दुगचार न रुके ता इससे उसकी उपयोगिता का प्रभाव नहीं कहा जा सकता । आक्षेपक ने यहाँ व्यभिचार दोष दिल लाकर न्यायनमिता का परिचय दिया है। इस दृष्टि से ता नीर्थङ्कर और सूर्य की उपयोगिता मी व्यभिचरित कहलाई । श्राक्ष पक को जानना चाहिये कि कारण के मद्भाव में कार्य के प्रभाव होने पर व्यभिचार नहीं होना, किन्तु कार्य के सद्भाव में कारण के अभाव होने पर व्यभि
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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