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________________ प्रश्न (६)-ऐसी कुशीला, मायाचारिणी, भ्रणहत्या. कारिणी, विधवा को तीव्र पाप (नरकायु आदि ) का बन्ध होता है या नहीं ? और उसके सहकारियों को भी कृत कारित अनुमोदन के कारण नीव पापका बन्ध होता है या नहीं ? उत्तर-ऐसे पापियों को तीव्र पाप का बंध न होगा नो किम होगा ? साथ में इतना और समझना चाहिये कि विधवाविवाह के विरोधी भी ऐसे पापियों में शामिल होते हैं, क्योंकि उनकी कठोरताओं और पनपातपूर्ण नियमों के कारण ही स्त्रियों को ऐसे पाप करने पड़ते हैं । यद्यपि विधवाविवाह के विरोधियों में सभी लोग भ्रूणहत्याओं को पसन्द नहीं करते फिर भी उनमें फी सदी नव्चे ऐसे हैं जो भ्रणहत्या पसन्द करेंगे, परन्तु विधवाविवाह का न्यायोचित मार्ग पसन्द न करेंगे। अगर हम वृव म्वादिष्ट भोजन करें और दूसरों को एक टुकड़ा भी न खाने दें ता उन्हें म्वाद के लिये नहीं तो क्ष धा शान्ति के लिये चोरी करना ही पड़ेगी। और इसका पाप हमें भी लगेगा। इसी तरह भ्रूणहत्या का पाप विधवा विवाह के विरोधियों को भी लगता है। प्रश्न (७)-वर्तमान समय में कितनी विधवाएँ पूर्ण पवित्रता से वैधव्य व्रत पालन कर सकती हैं ? उत्तर—यों तो भव्यमात्र में मोक्ष जाने तक की ताकत है, लेकिन अवस्था पर विचार करने से मालूम होता है कि वृद्ध विधवाओं को छोड़कर बाकी विधवाओं में फीसदी पाँच ही ऐसी होगी जो पवित्रता से वैधव्य का पालन कर सकती हो । विधुगे में कितने विधुर जीवन पर्यन्त विधुरत्व का पालन करते हैं ? विधवाओं के लिये भी यही बात है।
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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