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________________ समाधान-श्रेष्ठ मार्ग का उपदेश देना बुग नहीं है. परन्तु जो उस श्रेष्ठमार्ग का अवलम्बन नहीं कर सकते उनको उससे उतरनी श्रेणी के मार्ग में भी न चलने देना मतके नाम पर मतवाला हो जाना है। क्या विधवाविवाह का उपदेश ब्रह्मचर्यका घातक है ? यदि हाँ. नो गृहस्थधर्म का विधान भी मनिधर्म का घातक कहलायगा । पहिली श्रादि प्रतिमाओं का विधान भी दूमरी प्रादि प्रतिमाओं का घातक कहलायगा । यदि गृहस्थधर्म आदि का उपदेश देने वाले, वञ्चक. नास्तिक, पाखंडी, पापोपदेष्टा, पाप पंथ में फँसाने वाले आदि नहीं हैं ना विधवाविवाह के प्रचारक भी वञ्चक प्रादि नहीं हैं। क्योंकि जिस प्रकार पूर्ण संयम के अमाव में अविरति से हटाने के लिये गृहस्थधर्म (विग्ताविरत ) का उपदेश है उसी प्रकार पूर्ण ब्रह्मचर्य के अभाव में, व्यभिचार से दूर रखने के लिये विधवाविवाह का उपदेश है। जब विधवा-विवाह श्रागमविरुद्ध ही नहींहै तब उसमें विसंवाद कैसा ? और उसका उपदेश भी व्यभिचार की शिक्षा क्यों ? विधवाविवाह के उपदेशक ज़बर. दस्ती आदि कभी नहीं करते न ये बहिष्कार प्रादि की धमकियाँ देते हैं। ये सब पाप तो विधवाविवाह-विरोधी पण्डितों के ही सिर पर सवार है। आक्षेप (ग)-विधवाविवाह में वेश्या-सेवन की तरह प्रारम्भ भले ही कम हो, परन्तु परिग्रह-ममत्व परिणामकुमारी विवाह से असंख्यात गुणा है। (श्रीलाल) समाधान--यदि विधवाविवाहमें असंख्यात गुणा मम. त्व है तो विधुरविवाह में भी असंख्यातगुणा ममत्व मानना पडेगा। क्योंकि जिस प्रकार विधवा पर यह दोषारोपण किया जाता है कि उसे एक पुरुष से सन्तोष नहीं हुआ, उसी प्रकार विधुर को भी एक स्त्री से सन्तोष नहीं हुअा इसीलिये वह
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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