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________________ ( ५४ ) होने पर स्वर्ग जा सकता है या नहीं-इस पर श्रीलालजी तो कहते हैं कि वह सीधा नरक निगांदका पात्र है। जबकि विद्या. नन्द लिखते हैं कि उदासीन वत्ति रखने पर म्वर्ग जा सकता हैं। इस तरह दानों पापक एक दूसरे को काटते हैं। दोनों आक्षेपकोंक श्राक्ष पो पर निम्न में विचार किया जाता है : प्राक्षेप ( क )-पुनर्विवाह करने वाला मोक्ष तो तब जाय, जब वह गंड पीछा छोड़ । भाव ही मनिव्रत के नहीं होते। विधवाविवाह से संतान होगी वह गॅड का साँड फिर किसी का लडग बनेगा। (श्रीलाल) । विधवाविवाह की संतान मोक्ष की अधिकारिणी नहीं है । (विद्यानन्द) समाधान-- गॅड, साँड, लेडग श्रादि शब्दा का उत्तर देना वृथा है । विधवाविवाह की सन्तान मोक्ष जा सकती हैं। जय व्यभिचार जान सुदृष्टि मोक्ष जा सकता है, तब और की बात ही क्या है ? विधवाविवाह करने के बाद मुनिव्रत धारण कर सकता है और मोक्ष भी जा सकता है। इसमें तो विवाद ही नहीं है। ____ आक्षेप ( ख )-पुनर्विवाह करने वाले असच्छुद्र है । (विद्यानन्द) ममाधान--पहिले प्रश्न के उत्तर में इसका समाधान कर चुके है । देखो नं०-(ङ) आक्षेप (ग )-सागारधर्मामृत में लिखा है कि स्व. दार.संतापी पर-त्रो का कभी ग्रहण नहीं करता। विधवा का परस्त्रीत्व किस प्रमाण से इंटेगा। (विद्यानन्द ) समाधान-इस का समाधान उसी सागारधर्मामृत में है। वहाँ लिखा है कि म्वदार संतोषी परस्त्री-गमन और वेश्या. गमन नहीं करता । यहाँ पर ग्रन्थकार ने कन्या (कुमारी) को भी परस्त्री में शामिल किया है ( कन्यातु भाविकर्तृकत्वा.
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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