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________________ जैन इतिहास-एक झलक / 31 सभ्यता थी वह अत्यंत समृद्ध और समुन्नत थी। विद्वानों ने उसे श्रमण संस्कृति से संबद्ध किया है। सन् 1922 से 1927 के बीच भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा सिंधु घाटी के हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से कई नए तथ्य प्रकाश में आए हैं, जिनसे जैन धर्म की प्राचीनता के साथ-साथ उसकी प्राग्वैदिकता भी सिद्ध होती है। इन दोनों स्थानों में जिस संस्कृति की खोज हुई वह सिंधु घाटी की सभ्यता कही जाती है। विद्वानों के अनुसार वह लगभग 5000 वर्ष पुरानी संस्कृति है । इन स्थानों से प्राप्त पुरातात्विक सामग्री के आधार पर तत्कालीन भारतवासियों के रहन-सहन, पहनावा व रीतिरिवाज और धार्मिक विश्वासों का पता चलता है मोहनजोदड़ो से कुछ नग्न कायोत्सर्ग योगी मुद्राएं मिली हैं, उनका संबंध जैन संस्कृति से है। इसे प्रमाणित करते हुए स्व. राय बहादुर,प्रो. रामप्रसाद चंद्रा ने अपने शोधपूर्ण लेख में लिखा है ___“सिंधु मुहरों में से कुछ मुहरों पर उत्कीर्ण देवमूर्तियां न केवल योग मुद्रा में अवस्थित हैं वरन् उस प्राचीन युग में सिंधु घाटी में प्रचलित योग पर प्रकाश डालती हैं। उन मुहरों में खड़े हुए देवता योग की खड़ी मुद्रा भी प्रकट करते हैं और यह भी कि कायोत्सर्ग मुद्रा आश्चर्यजनक रूप से जैनों से संबंधित है। यह मुद्रा बैठकर ध्यान करने की न होकर खड़े होकर ध्यान करने की है। आदि पुराण सर्ग अठारह में ऋषभ अथवा वृषभ की तपस्या के सिलसिले में कायोत्सर्ग मुद्रा का वर्णन किया गया है । मथुरा के कर्जन पुरातत्व संग्रहालय में एक शिला फलक पर जैन वृषभ की कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी हुई चार प्रतिमाएं मिलती हैं,जो ईसा की द्वितीय शताब्दी की निश्चित की गई हैं। मथुरा की यह मुद्रा मूर्ति संख्या 12 में प्रतिबिंबित है। प्राचीन राजवंशों के काल की मिश्री स्थापत्य में कुछ ऐसी प्रतिमाएं मिलती हैं जिनकी भुजाएं दोनों ओर लटकी हुई हैं। यद्यपि ये मिश्री मूर्तियां या ग्रीक कुरों प्रायः उसी मुद्रा में मिलती हैं, किंतु उनमें वैराग्य की वह झलक नहीं है जो सिंधुघाटी की इन खड़ी मूर्तियों या जैनों की कायोत्सर्ग प्रतिमाओं में मिलती है। ऋषभ का अर्थ होता है वृषभ (बैल) और वृषभ जिन ऋषभ का चिह्न है।' प्रो. चंद्रा के इन विचारों का समर्थन प्रो. प्राणनाथ विद्यालंकार भी करते हैं। वे भी सिंधु घाटी में मिली इन कायोत्सर्ग प्रतिमाओं को ऋषभदेव की मानते हैं, उन्होंने तो सील क्रमांक 449 पर 'जिनेश्वर' शब्द भी पढ़ा है। इसी बात का समर्थन करते हुए डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी लिखते हैं कि फलक 12 और 118 आकृति 7 (मार्शल कृत मोहनजोदड़ो) कायोत्सर्ग नामक योगासन में खड़े हुए देवताओं को सूचित करती हैं। यह मुद्रा जैन योगियों की तपश्चर्या में विशेष रूप से मिलती है । जैसे मथुरा संग्रहालय में स्थापित तीर्थंकर ऋषभ देवता की मूर्ति में । ऋषभ का अर्थ है बैल, जो आदिनाथ का लक्षण है । मुहर संख्या EG.H. फलक पर अंकित देव मूर्ति में एक बैल ही बना है। संभव है यह ऋषभ का ही पूर्व रूप हो । यदि ऐसा है तो शैव धर्म की तरह जैन 1. मार्डन रिव्यु अगस्त 1932 पृ. 156-60 2. It my also be noted that incription on the indus seal No 449 reads according to my decipherment"Jinesh". Indian Historical Quarterly. Vol. VIII No. 250.
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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