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________________ 270 / जैन धर्म और दर्शन पाया जाता है। इसी प्रकार पदार्थ के विषय में भी सापेक्षता की दृष्टि से अविरोधी तत्त्व प्राप्त होते हैं। विरोधी धर्मों के समन्वय के अभाव में अर्थात् एकांत के सद्भाव में सदा संघर्ष और विवाद होते रहते हैं, विवाद का अंत तो तभी संभव है जब स्याद्वाद से तत्त्वों की परस्पर सापेक्ष कथन करके अपने-अपने दृष्टिकोणों के साथ-साथ अन्यों के दृष्टिकोणों का भी समन्वय हो । 1 इस प्रकार स्याद्वाद वस्तु तत्त्व के निरूपण की तर्कसंगत और वैज्ञानिक प्रणाली है यह न अनिश्चयवाद है और न संदेहवाद । यह स्पष्ट है कि स्याद्वाद किसी निश्चित अपेक्षा से एक निश्चित धर्म का प्रतिपादन करता है उसमें संदेह के लिए रंचमात्र भी अवकाश नहीं । अनेकांतवाद और सहिष्णुता सहिष्णुता उदारता सामाजिक संस्कृति अनेकान्तवाद स्याद्वाद और अहिंसा को एक ही सत्य के अलग-अलग नाम है। असल में यह भारत की सबसे बड़ी विलक्षणता का नाम है। जिसके अधीन यह देश एक हुआ है और जिसे अपनाकर सारा संसार एक हो सकता है। अनेकान्तवादी वह है जो दूसरे के मतों को भी आदर से देखना और समझना चाहता है । अनेकान्तवादी वह है। जो अपने पर भी संदेह करने की निष्पक्षता रखता है। अनेकान्तवादी वह है जो समझौतों को अपमान की वस्तु नहीं मानता। अशोक और हर्षवर्धन अनेकान्तवादी थे जिन्होंने एक धर्म से दीक्षित होते हुए भी सभी धर्मों की सेवा की। अकबर अनेकान्तवादी था, क्योंकि सत्य के सारे अंश उसे किसी एक धर्म में दिखाई नहीं दिए एवं सम्पूर्ण सत्य की खोज में वह आजीवन सभी धर्मों को टटोलता रहा । परमहंस रामकृष्ण अनेकान्तवादी थे क्योंकि हिन्दू होते हुए भी उन्होंने इस्लाम और ईसाइयत की साधना की थी । और गांधीजी का तो सारा जीवन ही अनेकान्तवाद का उन्मुक्त अध्याय था । वास्तव में भारत की सामाजिक संस्कृति का सारा दारोमदार अहिंसा पर है, स्याद्वाद और अनेकान्तवाद की कोमल भावना पर है। यदि अहिंसा नीचे दबी असहिष्णुता एवं दुराग्रह का विस्फोट हुआ, तो वे सारे ताने-बाने टूट जाएंगे जिन्हें इस देश में आनेवाली बीसियों जातियों ने हजारों वर्ष तक मिलकर बुना है 1 रामधारीसिंह 'दिनकर' (एई महामानवेर सागर तीरे से)
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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