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________________ पृष्ठभूमि / 21 अपेक्षा से ही उसे पिता कहा जा सकता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईन्सटाईन ने जिस Theory of Relativity का कथन किया है वह यही सापेक्षता का सिद्धांत है । लेकिन वह सिर्फ भौतिक पदार्थों तक ही सीमित है। जैन दर्शन में इसे और भी व्यापक अर्थों में कहा गया है कि लोक के सारे अस्तित्व सापेक्ष हैं। उन्हें लेकर कहा गया कोई भी निरपेक्ष कथन सत्य नहीं है। इस प्रकार हम कहें कि 'आत्मा' से 'परमात्मा' की यात्रा करनेवाला यह जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। इसकी अपनी मौलिक और स्वतंत्र परंपरा है। यह किसी की शाखा नहीं है। अहिंसा जैन संस्कृति की अमूल्य निधि है। जैनाचार अहिंसा की ही मूल भित्ति पर खड़ा है। अनेकांत जैन विचार का मूलाधार है। वास्तु स्वातंत्र्य की उदघोषणा करनेवाले जैन धर्म में कर्मणा वर्ण व्यवस्था को स्वीकार कर जो समता मूलक समाज व्यवस्था दी गयी है वह जैन धर्म की अनन्य देन है। जैन दर्शन का विज्ञान जैन-दर्शन की यह विशेषता मानी जा सकती है कि यह दर्शन अत्यंत विशाल,सर्वग्राही एवं उदार (catholic) दर्शन है,जो विभिन्न मान्यताओं के बीच समन्वय करने एवं सबों को उचित स्थान देने को तत्पर है। तथा इसका दृष्टिकोण बहुत अंशों में वैज्ञानिक प्रवृति (Spirit) से मेल खाता है। साथ ही साथ, यह बुराइयों को हटाकर विनाश के कगार पर खड़ी मानवता को सुख, शांति एवं मुक्ति का संदेश भी देता है। यह धर्म-दर्शन इतना पूर्ण और समृद्ध है कि, एक और विज्ञान के अनुकूल है, और दूसरी ओर विज्ञान के अशुभ प्रतिफलों से मुक्त भी है। इसमें विज्ञान की सभी खूबियां वर्तमान है साथ ही यह उनकी खामियों से भी मुक्त है। बल्कि यह उसकी पूरक प्रक्रिया भी हो सकता है। और विज्ञान को मानवतावादी और कल्याणकारी दृष्टिकोण भी दे सकता है। हरेन्द्रप्रसाद वर्मा -आस्था और चिंतन से खत
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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