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________________ 250 / जैन धर्म और दर्शन हैं वे साधु कहलाते हैं। इस प्रकार जैन मुनि स्व पर का हित करते हुए साधनारत् रहते हैं, तथा जीवन के अन्त में सल्लेखनापूर्वक देहोत्सर्ग करते हैं। आर्यिका पुरुषों की तरह स्त्रियां भी उत्कृष्ट संयम धारण कर मोक्ष मार्ग में अग्रसर हो सकती हैं। उत्कृष्ट संयम धारण करने वाली स्त्रियां आर्यिका कहलाती हैं। आर्यिकाओं का समस्त आचार प्रायः मुनियों के समान ही होता है। अन्तर मात्र इतना है कि पर्यायगत मर्यादा के कारण आर्यिकाएं मुनियों की तरह निर्वस्त्र नहीं रहतीं अपितु अपने शरीर पर एक सफेद साड़ी धारण करती हैं। उसी तरह मुनियों की भांति खड़े होकर आहार करने की अपेक्षा बैठकर ही अपनी अंजुलि पुटों में आहार करती हैं। आर्यिकाएं दो-तीन आदि आर्यिकाओं के समूह में रहती हैं। इनकी प्रधान गणनी कहलाती है जिनके निर्देशन में ये अपने संयम का अनुपालन करती हैं। इनके महाव्रतों को औपचारिक महाव्रत कहा जाता है। आर्यिकाएं क्षुल्लक, ऐलक से उच्च श्रेणी की मानी गयी हैं। संत तो पक्षियों की भांति होते हैं, उड़ते अनन्त आकाश में हैं, और पदचिन्ह पृथ्वी पर छोड़ते जाते हैं। संतों से लोग अज्ञान हैं । पक्षी दाना चुगने आता है इसलिए उसके पदचिन्ह बनते हैं और संत करुणाबुद्धि से उपदेश देने तथा आहार हेतु आते हैं इसलिए उनके चरण चिन्ह बनते हैं। यदि संत की आहार-विहार को क्रिया बंद हो जाए तो गृहस्थों का जीवन अंधकारमय हो जाएगा। इसलिए संतों का रहना, और आना-जाना मंगलकारी है। सुख को कितने ही आश्वासन हों पर मिलता दुख ही है। सुख की कितनी ही योजनाएं हों पर मिलता दुख ही है । बस तुम्हारी कामना वैसी है जैसे कोई पानी को साफकर पीने की चेष्टा कर रहा है। आदर्श स्थिति मनुष्य मात्र को आदर्श स्थिति दिगम्बर ही है। मुझे स्वयं नग्नावस्था प्रिय है। -महात्मा गांधी सबसे उच्च पद जो कि मनुष्य धारण कर सकता है, वह दिगम्बर मुनि का पद है। इस अवस्था में मनुष्य साधारण मनुष्य न रहकर अपने ध्यान के बल से परमात्मा का मानो अंश हो जाता है। ए. हुबोई *-दिगम्बरत्व व दिगम्बर मुनि से
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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