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________________ परमाणुओं का निरन्तर प्रहण व त्याग करता रहता है, पर विचार परिष्कृति या विचार स्वातन्त्रय के अभाव में वह इस ग्रहण-त्याग की क्रिया से सर्वथा अनभिज्ञ होने के कारण, उसके द्वारा होने वाले अन्तर परिवर्तन को समझ नहीं पाता व केवल स्थूल व्यवहार के पाश में फँसा रहकर इन्द्रिय ग्राह्य अवयवों के आदान प्रदान में ही व्यस्त व मस्त रहता है। विचार शोध की सहायता से यह सूक्ष्म आवागमन बोधसुलभ हो सकता है-यही बोध है जैन परिभाषा में उल्लखित अवधि । इसी विचार शोध का यांत्रिक संस्करण कर मानव सूक्ष्म अणुस्कंधों को ग्रहण करने में समर्थ होने वाली वस्तुओं का निर्माण करे तो अवधि-सुलभ बोध के समान परिणामों की आशा की जा सकती है-कुछ सूक्ष्म यन्त्रों के आविष्कार से आज यह प्रमाणित भी होगया है। ___ गहरे विचार से देखा जाय तो यह सिद्ध होता है कि यन्त्र सम्भव प्रयोग अथवा क्रियायें मति श्रुति का ही विषय है पर साथ २ यह भी मानना पड़ता है कि विचार की अन्तर विकसित धारा को, जिसके प्रवाह को अवधि कहा गया है, प्रमाणित करने वाली सूक्ष्म यन्त्र क्रियायें मति श्रुति से कुछ परे की है। ___ अवधि को प्रत्यक्ष ज्ञान की कोटि में रखा गया है। प्रत्यक्ष का सम्बन्ध उस बोध से है जो आत्मा-चेतन जीव की अपनी प्रेरणा से उत्पन्न हो, जिसकी उपलब्धि में पर पदाथै कारण न हो । हालांकि पर की सर्वथा अनपेक्षा से उत्पन्न ज्ञान की श्रेणी और आगे की वस्तु है पर उसके पूर्व की तन्निकट व्यवस्थिति का
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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