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________________ ( ६२, ) आग्नेयास्त्र वारुणास्त्र पाशुपातास्त्र आदि अनगिनत अद्भुत ध्वंशकारी विशिष्ट शक्ति प्रेरित युद्धोपकरणों का प्रयोग, विचार व कौशल की कितनी बड़ी पहुँच का परिणाम है यह उस वर्णन को-युक्त मानते ही अविदित नहीं रहता । आज के आधुनिक आग्नेयास्त्र अण्वास्त्रके साथ हम पुरानन यंत्र मंत्र प्रेरित अस्त्रास्त्रों की स्थिर चित्त हो तुलना करने बै तो पुरातन नूतन के प्रयोग में अंततः कोई विशेष अमामंजस्य दिग्यायी नहीं देगा। ___ अस्त्र प्रयोग के समय जब हम पढ़ते हैं कि न जाने किम विचार व कौशल की सूक्ष्म या स्थूल यांत्रिक या वैद्युतिक प्रेरणा द्वारा प्रताड़ित अस्त्र की गति को जहां का तहां रुद्ध कर दिया गया, तो हमें सहसा यह सोचने को बाध्य होना पड़ता है कि गति रोधक यह "स्थिति'' शक्ति क्या है ? फेंके हुए अस्त्र का अन्यास्त्र फेंक कर रोध किया जा सकता है पर यह कल्पना अत्यन्त नवीन व अद्भुत है कि गतिशील अस्त्र को तदनुरूप बिना स्थूल सम्पर्क के गतिहीन कर विनष्ट करना भी सम्भव है । गति को स्थित करना कैसे व क्यों सम्भव है ? गति निरोधक शक्ति क्या सचमुच एक पृथक शक्ति है ? या गति के अभाव को ही स्थिति कहकर ये छुटकारा पा लेने में सार है- ये प्रश्न आज बड़ा महत्व रखते हैं। जब गति के भिन्न २ प्रयोग करने का कौशल प्रयत्न साध्य हो चुका है एवं उसके विध्वंशकारी या निर्माण सहायक परिणाम उत्पन्न करने में हम समर्थ होरहे हैं तो इस प्रश्न को विशेष अवकाश है कि निर्माण को “ स्थित" रखने का श्रेय हम विशिष्ट गति के
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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