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________________ ( ४७ ) ' पाने वाले जड़ की बात है, जहां भावात्मक चेतन के लिये तो यह भी घटित नही होता | चेतन चेतन को किसी भी रूप में बाधित नहीं करता । आकाश तो इन सबको एवं इनमें परिस्थितियों वश उदीयमान होने वाले समस्त परिवर्तनों को स्थान देता है । यह यह आकाश के अवकाश का विशेषत्व है । सचन कठोर अभेव शिलाखंड आकाश के विशेष स्थान को अधिकृत किये हुए रहता है, वहां भी स्मूक्ष्म परमाणुओं का जल मध्य की तरह आवागमन होता रहता है, वहां जीवों का भी निर्वाध आवागमन है - अवकाश का ऐसा ही स्वभाव है । सूक्ष्म स्थूल स्कंधों के आवागमन से अर्थात निर्माण ध्वंश से आकाश के छोटे बड़े स्थानों में कभी अपेक्षाकृत पूर्ति या कमी रिक्तता का जो व्यवहार ज्ञान गोचर होता है, उसी को देखकर यह कहा गया है कि काश में अवकाश को लेकर स्वरूपांतर घटित होता है । प्रकाश का निर्लिप्तत्व गुण अत्यत व्यापक है, किसी के लिये किसी अवस्था में बाधा नहीं होती - अपने ही सूक्ष्म स्थूलावयवों से बाधित हो सकते हैं पदार्थ, किन्तु आकाश द्वारा कहीं कोई रोक टोक नहीं होती । आकाश का यह भासित होने वाला निश्चेष्ट स्वरूप परोपवर्ती द्रव्य द्रव्य के सहकार से अत्यन्त गूढ़ रहस्य युक्त हो जीव जड़ के आवागमन के सिद्धांत पर अपना गहरा प्रभाव डालने मे समर्थ होता है - यह हमें महावौर के उपदेशों से क्रमशः ज्ञात होता है । साहित्य में आकाश प्रदेशों की सुन्दर परिकल्पना वर्णित है, एवं उनके सूक्ष्मात्र सूक्ष्म विभागों का दिग्दर्शन
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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