SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) = साथ चलता रहता है । इन तीनों क्रमों के अनिरुद्ध प्रवाह से पदार्थ जीवित है । कहीं किसी भी क्रम को अनियमित किया जाय अथवा तोड़ा जाय तो उस द्रव्य का प्रवाह (नीवन) लड़खड़ा जाता है एवं विध्वंश लीला सी उपस्थिति हो जाती है, महावीर के इस उपदेश में कितना गूढ़ रहस्य है इसे आज के वैज्ञानिक अल्पांश में समझ कर या उसका प्रयोग कर अपने आपको कितना शक्तिशाली मान रहे हैं यह विज्ञों से अविदित नहीं है। सापेक्ष निरपेक्ष सभी प्रकार के तत्त्वों के रहस्यों का स्पष्टीकरण जैसा महावीर ने कहा है उसकी व्याख्या करने बैठे तो ग्रन्थ पर ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं । पर विस्तार भय से हमें अपने विवरण को संक्षिप्त करना पड़रहा है । अतः हम उपरोक्त क्रम से उल्लेख मात्र करते हुये अग्रसर होते हैं। संसार के स्वरूप को समझने के लिये महावीर ने द्रव्यत्त्व की परिभाषा जब उत्पाद, ध्रौव्य व व्यय में की तो विद्रोही उत्तेजित हो उठे, पर इस अकाट्य युक्ति के सामने किसी के पास कोई उत्तर न था। उन्होंने समझाना शुरू किया कि जिस पदार्थ को द्रव्य मानने की ओर अग्रसर होना हो, सर्व प्रथम और सर्वान्त मे यही देखना है कि यह क्रम कहीं टूटता तो नहीं है ? उत्पत्ति के साथ २ व्यय को स्वीकार किये बिना सत्य की स्थापना नहीं होती ( अन्यथा उत्पत्ति निरर्थक व निष्कारण अतः असत्य हो जाती है ) एवं सर्वदा स्थिति को एकान्त रूप
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy