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________________ से देखने लगे हों । किंतु जब चढ़ाव के बाद उतार की बारी आई ईर्षा एवं कलह ने प्रेम सहयोग के निर्मल वाताबरण को आच्छादित कर दिया और संकुचित वृत्तियों के पोषक लोग समाज के कर्णधार बन गये । परिणाम स्वरूप भिन्न २ विचार पद्धतियों का अनुसरण कर तत्त्व-पथ पर अग्रसर होने वाजे मेधावियों को संकीर्णता की परिधि में अपनी विचार शोध को वद्ध करना पड़ा। हो सकता है उस समय उनका उद्देश्य यह रहा हो कि ऐसा करने से विशेष कोटि की तत्व-शोध-प्रणालियों की रक्षा हो जायगी एवं अच्छा समय आने परबिखरे हुवे सारे फूल फिर एक सूत में गूथ दिये जायगे। किंतु एक बार ढलाव की ओर लुढ़क पड़ने पर किसी भारी वस्तु को रोकना जिस प्रकार संभव नहीं होता उसी तरह संकीर्णता के पथ पर भारतीय समूह जब सम्प्रदायों में बँटने लगे तो कोई महानुभाव रोकने में समर्थ न हो सका । किसी ने कोई विशिष्ट प्रयत्न एकता, के लिये नहीं किया। एक दूसरे के गुणों को देख अपने दोषों को निकालने के क्रम के स्थान पर आया एक दूसरे के दोषों का प्रचार एवं गुणों का तिरोभाव । राजनीति भी लड़खड़ाई, समाज शृङ्खला टूटी, विकास रुका एवं परिणाम जो हुआ वह आज सहस्र वर्षों के हमारे पतन काल के इतिवृत्त में कलङ्क की गाथा के परू में आलेखित है। जाति भेद को जंजीरों में जकड़ी हुई भारतीय संस्कृति उङ्खलता, मादकता, निर्दयता व अनैतिकता का प्रचार, कतिपय
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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