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________________ ( य ) लेखक ने प्रत्येक द्रव्य का वर्णन और उसकी आवश्यकता बहुत ही सुन्दर ढंग से बतलाई है। जीव द्रव्य का वर्णन करते हुए लिखा है- “एक एक चेतन को महावीर ने प्रथक २ सत्ता दी। अर्थात् चेतन जड़ के सूक्ष्मतम अणु की तरह एक २ प्रथक द्रव्य है । किंतु जड़ जिस तरह दूसरे जडों के साथ घुल मिलकर कार्य करता है उस तरह चेतन अन्य चेतनों के साथ सर्वथा मिल नहीं जाता। एक शरीर धारण कर लेने पर भी चेतन दूसरे के साथ मिलता नहीं और न अपने व्यक्तित्व को खोता है।" इसी तरह पुद्गल आदि अचेतन द्रन्यों पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने आधुनिक विज्ञान के मन्तव्यों के साथ उनकी तुलना की है । जैन धर्म में पुद्गल उसे कहते हैं जिसमें रूप रस गध और स्पर्श गुण पाये जाते हैं। उसके दो भेद हैं स्कंध और परमाणु । सबसे छोटे अविभागी पुद्गल उसको परमाणु कहते हैं और परमाणु के मेल से जो तैयार होते हैं वे स्कन्ध कहे जाते हैं। मिलने वाले दो परमाणु ओं में रहने वाले स्निग्ध और रूक्ष गुण : ही बन्ध के काम होते है । किन्तु उन गुणों का अनुपात कितना होने से ही दो परमाणुओं में बन्ध हो सकता है इसका विवेचन भी जैन सिद्धान्त में है।
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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