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________________ विज्ञान की आत्म विषयक शोध के लिये प्रारम्भिक बोज गाथा के समान सिद्ध हो सकते हैं इस ओर विचारकों को ध्यान देना चाहिये। विहङ्गम दृष्टि से हम लात्विक विचार कणों का उल्लेख मात्र करते हुये बढ़ रहे हैं, अवांतर विवेचनों ( तद् विषयक अगाध साहित्य विद्यमान है ) से भाव तत्वधारा कितनी स्पष्ट झलकती है, इसको व्यक्त करने का अवकाश नहीं है इस .समय । अतः साहित्य के विलुप्त किंतु अत्यन्त विशिष्ट अङ्ग का नाम मात्र लिखकर हम हमारी इस संस्कृति कथा को पूर्ण करते हैं। पूर्व, जैन साहित्य के व्यावहारिक दृष्टि से विशिष्ट तम अङ्ग थे। समस्त वैज्ञानिक सम्भावनाओं व कृत्तियों का जिनका भारतीय ऋषियों को पता था, पूर्व साहित्य में सङ्कलन व समावेश किया गया था। वास्तव में पूर्व साहित्य प्रयोग साहित्य था, केवल जैन सिद्धान्तों का ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय विज्ञान का मानो निचोड़ उसमें एकत्रित किया गया था। पूर्वो की विषय सूचि को देखकर हमें अचम्भित होना पड़ता है। एवं उनकी प्रशंसा में कहे गये उद्गारों को देखकर दुख होता है कि इतने मूल्यवान प्रयोग साहित्य को क्यों नष्ट किया गया। माना कि कालदोष अथवा अविवेक के कारण दुष्प्रयोग करता हुआ मानव विनाश पथ की ओर अग्रसर हो चला था एवं आसन्न व सुदूर भविष्य में भी ऐसी सम्भावनाओं
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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