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________________ ":सहायकका संक्षिप्त जीवनचरित” इस ग्रंथकी छपाईमें कलन्द्रीवाले श्रीयुत शेट फूलचन्दजी संघवी की ओरसे आर्थिक सहायता मिली है, अतः आपके द्वारा हुये सत्कृत्योंका संक्षिप्त उल्लेख करना यहाँपर अनुचित न गिना जायगा। । श्रीमान् शेट फूलचन्दजी संघवी का जन्म संवत् १९२१ में राजपूताना सिरोही स्टेट कालन्द्री गांवमें ओसवाल कुलमें हुवा था । आपके पिता उसाजी एक साधारण स्थितिके गृहस्थ थे। यद्यपि आप विलकुल साधारण परिस्थिति में जन्में थे तथापि आपने अपने उद्योगी स्वभावके अनुसार व्यापार द्वारा लाखो रुपया कमाकर अपनी पूर्व परिस्थितिको.सर्वथा बदल दिया । जव आपने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारनेके लिये स्वस्थान छोड़ कर परदेश गमन किया तव आपकी मात्र चौदह वर्षकी उमर थी, प्रथम वेलगांव जिलेमें आपने एक साधारण नौकरी की थी। वस वह साधारण नौकरीही आपकी उन्नतिकी नीव थी। नौकरी चढ़ते चढ़ते कुच्छ दिनाके वाद आपने व्यापारमें हाथ डाला । पूर्व पुण्यके योगले लक्ष्मीका पदार्पण होने लगा । आपका बचपनसे ही धर्मपर प्रेम होनेके कारण आप अन्य कितने एक धनादयः मारवाडी भाइयोंके समान जीनव पर्यन्त धन वटोरमें ही न लगे रह कर उसका सदुपयोग भी करते रहे। मनुष्यके पास दो प्रकारकी धनसंपत्ति होती है । एक तो दौलत-दोलत और दूसरी लक्ष्मी । दौलत पापानुबन्धी पुण्यसे प्राप्त होती है और वह आत्मकल्याणके सत्कार्यों में या परोपकारमें न लगकर मात्र पिंड पोषण एवं असत्कृत्यों में ही उसका व्यय होता है। और अन्तमें उसकी दो लातोले 'मनुष्यको दुःखानुभव ही करना पड़ता है । लक्ष्मी पुण्यानुवन्धी पुण्यके प्रतापसे प्राप्त होती है और उसका उपयोग भी सत्कृत्यमें ही होता है। एवं अन्तमें
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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