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________________ ईश्वरवाद वगैरह और साथही आपकी मानी हुई परमेश्वरमें रही हुई बुद्धि, इच्छा तथा प्रयत्न आदि । इस प्रकार बनानेवाले विनाकी चीजें भी संसार में बहुत ही बनी हुई देख पड़ती हैं, इस लिये बनानेवाले या कर्त्ताके विना कोई वस्तु वन ही नहीं सकती यह कल्पना या अटकल किस तरह सत्य मानी जाय ? कर्तवादी-आपने जो पर्वत, समुद्र, वृक्ष तथा घासादिका सहारा लेकर यह सिद्ध करनेकी चेष्टा की है कि संसारमें कितनी एक वस्तुये ऐसी भी हैं कि जिनका कोई भी वनानेवाला कर्ता नहीं है, यह आपकी भूल मालूम होती है। क्यों कि आप जहाँ पर जिस किसी वस्तुके बनानेवाले को नहीं देख सकते वहाँ पर उस वस्तुका बनानेवाला आपको ईश्वर समझ लेना चाहिये । इस लिये श्राप पूर्वोक्त उदाहरण दे कर यह नहीं कह सकते कि ऐसी भी चीजें मिल सकती हैं कि जिनका कोई वनानेवाला ही नहीं और यो कह कर आप कृत्रिमभाव द्वारा उपस्थित होनेवाली कर्त्ताकी कल्पनाको जरा भी शिथिल नहीं कर सकते। अकतवादी--महाशयजी ! आपका कथन तो हास्यजनक मालूम होता है। अभीतक तो ईश्वर कर्ताका कहीं पता नहीं है। उसकी बनावटकी भी सिद्धि नहीं हुई है इतने में तो पाप वीचमें ईश्वरको ही ला खड़ा करते हैं। मानो उसकी सिद्धि ही न हो गई हो । जिस वस्तुका हमारे और आपके दरम्यान अभीतक वाद विवाद चल रहा है और जिसके विपयमें अभीतक कुछ भी निर्णय नहीं हुआ बल्कि जिसके सावित होनेकी संभावना ही अभीतक नहीं है उसे आप अपनी प्रस्तुत चर्चा में किस तरह ला सकते हैं ? हम क्या और दूसरे क्या जव तक ईश्वरका पता न लगे, उसकी सिद्धि न हो सके तब तक उसे बनानेवाला-करनेवाला या रचयितातया किस तरह मान सकते हैं ? इस लिये आपकी पूर्वोक्त दलील सर्वथा निर्मूल है। . कर्तवादी-निर्मूल क्यों है ? इन घास और लतायें वगैरहको ईश्वर ही तो बनाता है। जहाँ जहाँ पर वह घास लता आदि जमती है वहाँ पर उसे ईश्वर ही जमाता है,वह अदृश्य होकर उन चीजोंको
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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