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________________ प्रमाणवाद २०३ स्वभाववाला हो तो वह एक ही कारण भिन्न २ स्वभाववाले अनेक कार्योको किस तरह उत्पन्न कर सकता है ? अथवा यदि वह एक ही स्वभाववाला कारण अनेक भिन्न २ कायाको कर सकता हो तो फिर एक (नित्य) स्वभाववाला एक ही पदार्थ भी अनेक काम कर सकता है, ऐसी मान्यतामें क्या दूषण श्रा सकता है ? यदि इस मान्यतामें बाधा आयगी तो उपरोक्त मान्यतामें भी वाधा आयेगी यह क्यों नहीं माना जा सकता? क्योंकि बाधा आनेके कारण दोनों में समान ही हैं । यदि कदाचित् यों कहा जाय कि सर्वथा क्षणिक एक स्वभाववाला भी कारण मात्र निमित्तके भेदसे भिन्न भिन्न कार्योंको कर सकता है। तब तो यही समाधान एक स्वभाववाले नित्य पदार्थमें भी चरितार्थ हो सकता है। अव यदि उस क्षणिक कारणको भिन्न भिन्न स्वभाववाला माना जाय और वैसे अनेक भिन्न भिन्न कार्योंकी उत्पत्तिको माना जाय तो इसी प्रकार नित्य पदार्थके सम्बन्धमे भी क्यों न माना जाय ? कदाचित् यह कहा जाय कि नित्य पदार्थ भिन्न २ स्वभाघवाला कैसे हो सकता है ? इस प्रश्नका उत्तर इस तरह है:- . जैसे सर्वथा क्षणिक और अंश रहित पदार्थ भिन्न २ स्वभावाला हो सकता है वैसे ही सर्वथा नित्य पदार्थ भी भिन्न २ स्वभाववाला हो सकता है। इस प्रकार जो जो दूषण एकान्त अनित्यवादमें आते हैं वे ही दूषण एकान्त नित्यवादमें भी आते हैं। अतः इस प्रकारके सर्वथा एकान्तका परित्याग कर पदार्थ मात्रको दोनों रूपमें किसी अपेक्षासे नित्यरुप और किसी अपेक्षासे अनित्यरूप मानना युक्तियुक्त है। इस तरह माननेसे उपरोक्त एकः भी दूपण अनेकान्तवादका स्पर्श नहीं कर सकता। मात्र ज्ञानको ही माननेवाले बौद्ध शानके और पदार्थके आकारों को एक मानते हैं तथा ग्राह्य-पदार्थ एवं ग्राहक-ज्ञानके आकारोंको ज्ञानसे भिन्न २ मानते हैं। इस प्रकार मानते हुये वे अनेकान्त वादका निपेध किस तरह कर सकते हैं ? तथा एक ही शान किसी अपेक्षाले अनुभूत है और किसी अपेक्षासे अननुभूत है। इस तरहके शानके साथ सम्बन्ध रखता हुआ अनेकान्तवाद कैसे मिटाया
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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