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________________ देव. यह सव कुछ श्वेताम्बरोंके समान ही है । उनके शास्त्रों और तर्कग्रन्थोंमें अन्य कुछ भी विशेष भेद मालूम नहीं देता।। देव. - जैन दर्शनमें देवका स्वरूप निम्न लिखे मुजब माना गया है, राग द्वेष रहित, महामोहको नाश करनेवाला, केवल शान और केवल दर्शनवाला, देव और दानवोंके इंद्रोंसे पूजित, सत्य प्रकाश करनेवाला और सर्व कर्मोको नष्ट करके परम पदको पाने वाला, इस प्रकारका जिनेन्द्र जैन दर्शनमें देव माना गया है। पूर्वोक्त प्रत्येक विशेषणका पृथक् अर्थ इस प्रकार हैरागद्वेपरहित-राग याने लोभ और दम्भ, द्वेप याने क्रोध और अभिमान, इन दोनों दोपोंसे रहित । अर्थात् सर्वथा वीतरागः। महामोहका नाश करनेवाला-महामोह याने मोहनीय कर्मके उदयसे पैदा होनेवाला जो आत्मविकार है कि जिसके द्वारा (तमाम धर्मोमें दूपणरुप ) हिंसाको भी धर्मस्वरूप प्रतिपादन करनेवाले शास्त्रको सुशास्त्र मान कर उसमें कथन की हुई रीतिसे भुक्ति और शान्ति प्राप्त करनेका व्यामोह पैदा होता है उसे नष्ट करनेवाला । पूर्वोक राग द्वेष और मोह इस दूपण त्रयको जीतना संसारमें लोहेके चने चावने समान महा विषम और दुष्कर है। यह दूपणत्रय ही जीवात्माको संसारमें परिभ्रमण कराता है। इसी कारण शास्त्रमें इसे मुक्ति मार्गमें अर्गना-रुकावट करनेवाला कहा है । " परन्तु यदि ये तीनों दूषण विद्यमान ही न होते तो किसीको दुःख ही क्यों होता? सुखका इतना महत्व कैसे बढ़ता ? और मुक्ति प्राप्त कौन न कर सकता?" जिनेन्द्र देवमें राग द्वेष तथा मोह इनमेंसे एक भी दूषण नहीं । क्योंकि रागका चिन्ह स्त्रीसंग है, द्वेपका चिन्ह शस्त्र है और मोहका लक्षण कुचरित्र तथा कुशास्त्रका विधान है । जिनेन्द्र देवमें इन पूर्वोक चिन्होंमेले एक भी चिन्ह देख नहीं पड़ता, अतः जिनेन्द्र देव ही राग द्वेप और मोह रहित हैं। इन विशेषणों द्वारा मिनेट ने
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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