SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्जरा और मोक्ष क्षायिकदर्शन, और क्षायिकसुख । उन जीवोंमें कि जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है अनन्तशान, अनन्तदर्शन, अनन्तवर्यि और अनन्तसुख रहता है । मोक्षमें जो अनन्त सुख है वह परमानन्द मय है और वह सुख संसारमें मालूम देनेवाले सुखसे सर्वथा मिन है । जिस सुखका अनुभव मोक्ष प्राप्त किये हुये जीव करते. हैं उस सुखका अनुभव मनुष्यों एवं देवोंको भीमुहस्स नहीं होता। यदि भूत, भविष्य, वर्तमानकालीन सब देवोंके अनन्त सुखको इकठ्ठा. किया जाय तथापि वह मोक्षसुखके अनन्त भागमें भी नहीं आ. सकता । सिद्धके जीवोंका सुख इतना अधिक है कि यदि उसका अनन्तवाँ भाग कल्पित किया जाय तथापि वह समस्त श्राकाशमें समा नहीं सकता। इस विषय में योगशास्त्र में इस प्रकार बतलाया है। " देव दानव और मनुष्योंके इन्द्र तीन लोकमें जिस सुखका अनुभव करते हैं वह सुख मोक्षसुखके अनन्तवे भाग जितना भी नहीं हो सकता" वह जो सुख है सो स्वाभाविक है, शाश्वत है, एवं इन्द्रियोंके अनुभवसे भिन्न है, क्योंकि उसका अनुभव मात्र आत्मा ही कर सकता है । मोक्षमें ऐसा सुख होनेसे उसे चारों पुरुषार्थमें बड़ा पुरुषार्थ कहा गया है। - मोक्षको प्राप्त हुये जीव-सिद्धोंके जीव सुखका अनुभव करते. हैं या नहीं? इस विषयमें तीन मत इस प्रकार हैं। वैशेषिक मतवाले ऐसा मानते हैं कि मुक्तिको प्राप्त हुये श्रात्माके वुद्धि, सुख, दुःख, वगैरह गुण नाश होनेके कारण वह किस तरह सुखी हो लकता है ? बौद्धमतवाले कहते हैं कि मोक्षमें चित्तका सर्वस्वी विनाश हो जानेके कारण श्रात्मा स्वयं ही नहीं रह सकता तो. फिर सुखकी तो बात ही क्या? साँख्यमतवाले कहते हैं कि मोक्षमें सुख हो तो इससे आत्माको क्या ? क्योंकि वह स्वयं भोगनेकी शक्ति ही धारण नहीं करता, इससे वहाँका.आत्मा सुखी किस तरह हो सकता है ? इन तीनों से प्रथम मतवालेको इस. प्रकार उत्तर दिया जाता है• वैशेषिकमतवाले. जो यह कहते हैं कि मोक्ष दशामें वृद्धिं-सुख
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy