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________________ । १४ भावानेवा: सन्ति बंधहेतवो वा । अपि च कुत्रचिद् योगकषाययोरेव बघहेतुत्वं, कुत्रचित मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगानां, कुत्रचिच्च पूर्वोक्तपचाना वधहेतुत्वम् । एतत् सर्व कथमितिचेदित्यः आस्रवो हि बधहेतुर्भवति । तस्य वधपूर्वपर्यायत्वादिति . भावासवाणां मिथ्यात्वादीनां वंधहेतूत्ववचने कानूपपत्तिः ? भावा नवा हि द्रव्यबन्धनिमित्तकारणानि, भावबंधस्य चोपादानकारणानि । यच्च बंधहेतुसंख्याना विभिन्नत्वं तत्र तू केवलं विवक्षावैचित्र्यमेवकारणम् । वंधस्य हि चतस्रो विशेषता भवति पूक्तिाः प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशाख्याः । तत्र प्रकृतिप्रदेशबंधयो कारणयोगः, स्थित्यनुभागयोश्च कषाय इति संक्षेपतो द्वयमेवावश्यक बधकारणम् । विस्तरतस्तु गुणस्थानक्रमापेक्षया पूर्वोक्तं चतुष्टय - - - कषाय को ही बंध का कारण कहा है तो कही मिथ्यात्व अविरति कषाय और योग को, और कहीं पर पहले कहे गए पाचा को बन्ध का कारण बताया है यह सब कैसे सगत है। समाधान:-निश्चय से आश्रव ही वन्ध का कारण होता । है। क्योकि वह बन्ध की पूर्व पर्याय है। मिथ्यात्व वगैरह भावाश्रवों को बन्ध का कारण बताने में कोई असंगति नहीं है निश्चय से भावाश्रव द्रव्यबन्ध के निमित्त कारण होते हैं और भाववध के उपादान कारण 1 और जो वन्ध के कारणो की संख्या में विभिन्नता है उसमें तो एक मात्र कारण विचित्र वर्णन शैली ही है । बंध के पहले कहे गए प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश नामक चार भेद है-उनमे प्रकृति और प्रदेश बंध का कारण योग है और स्थिति अनुभाग वन्ध का कषाय । इस तरह संक्षेप से कहने पर वन्ध के कारण दो ही उपयुक्त रहते है। और विस्तार की जहा विवक्षा होती है वहां गुणस्थानों की अपेक्षा से पहले कहे हुए चार या पांच कारण कहे
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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