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________________ ( १६४ ) ज्ञायी सोपयोग मात्मा प्रथमो यथा राजज्ञानेन सयुक्तः सोपयोगों मनुष्यो भावागमराजा । द्वितीयस्तु तत्पर्यायात्मकं वस्तु यथा । । वर्तमाने राज्य कुर्वन् राजा निगद्यते। ननु नामनिपभावनिक्षेपयो. को भेद इति चेदुच्यते-नामनिक्षेपे व्यक्तिवाचकत्वं भवति भावनिक्षेपे तु भाववाचकत्वं जातिवाचकत्वं वा। भावनिक्षेपे ज्ञायकशरीरप्रभृतयो भेदा 'द्रव्यनिक्षेपवन्न भवन्तीतिद्रव्यनिक्षेपादप्यस्य भेदोऽस्ति । अस्य केवलं वर्तमानपर्याय णैव संबधोऽस्ति । अथ नयनिक्षेपयो. कः सम्बन्ध । उच्यते-नयोहि ज्ञानात्मको - दो भेद है। इनमें उस विषय का ज्ञाता और उसी का उपयोग, करने वाला प्रात्मा प्रागम-भाव-निक्षेप है-जैसे राज-ज्ञान से सहित और उसका उपयोग करने वाला मनुष्य. भाव-मागम राजा है। वर्तमान पर्याय रूप जो वस्तु है वह नो-पागम-भावनिक्षेप है जैसे वर्तमान में राज्य करने वाले को राजा कहना। नाम-निक्षेप और भाव-निक्षेप में क्या भेद हैं ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर है कि नाम-निक्षेप मे व्यक्ति का कथन होता है जब कि भाव-निक्षेप में भाव या जाति का कथन होता है। द्रव्य निक्षेप की तरह ज्ञायक शरीर वगैरह भेद भाव निक्षेप में नहीं होते, इसलिए द्रव्य निक्षेप से भाव निक्षेप भिन्न सिद्ध हो जाता है। इस भाव निक्षेप का तो मात्र वर्तमान पर्याय से ही सम्बन्ध है। नय और निक्षेप मे क्या सम्बन्ध है ऐसा प्रश्न होने पर कहा जाता है । निश्चय से नय ज्ञानात्मक होता है और निक्षेप
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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