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________________ चतुर्थोऽध्यायः निक्षेपस्वरूपविवेचनम् . अर्थाना शब्देषु शब्दानां चार्थेष्वारोपो निक्षेपः प्रोच्यते। प्रारोपो निक्षेपो न्यासो विन्यास इत्यादयो हि शब्दा पर्यायवाचिनः । प्रायो हि औपचारिकसम्बन्धरूपो निक्षेपः । निक्षेपो हि शब्देषु शब्दानां वा क्रियते । अतस्तावच्छब्दान् विवृण्वन्तिः नामाख्यातोपसर्गनिपातभेदाच्चतुर्विधाः शब्दा प्रोक्ताः । घटः इत्यादयः शब्दाः नामशब्दाः । गच्छतीत्यादयः आख्यात - - -- - - - - - - चौथा अध्याय निक्षेप के स्वरूप का वर्णन ' अर्थों का शब्दों मे और शब्दो का अर्थों में जोआरोप किया जाता है वह निक्षेप कहा जाता है। ग्रारोप, निक्षेप, न्यास, विन्यास वगैरह पर्यायवाची शब्द हैं और उनका अर्थ रखना या प्रारोपण करना होता है। प्राय. निक्षेप औपचारिक सम्बन्ध रूप होता है । अथवा शब्दों में शब्दो का भी निक्षेप किया जाता है, इसलिए शब्द के प्रकारो का वर्णन किया जाता है। . नाम, पाख्यात, उपसर्ग और निपात के भेद मे शब्द चार प्रकार के कहे गये है। घट पट वगैरह शब्द नामशब्द है । जाना पाना आदि क्रिया शब्द प्रख्यात-शब्द हैं। प्र, परा वगरह -
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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