SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२० ) घट. स्यादस्ति मास्ति चेति ततीयः, क्रमापितस्वपररूपाध पेक्षयाऽस्तिनास्त्यात्मको घट इति । सहापितस्वपररूपादिविववाया स्यादवाच्यो घट, सह वक्त मशक्यत्वादिति चतुर्थभङ्गः । व्यस्तं द्रव्य सहार्पितौ द्रव्यपर्यायौ चाश्रित्य स्यादस्ति चावक्तव्य एव घट इति पचमभङ्ग। व्यस्त पर्याय समस्तो द्रव्यपर्यायो चाश्रित्य स्यानास्ति चावक्तव्य एव घट इति पष्ठो भङ्गः । एवं व्यस्तो क्रमापितो समस्ती सहापितो द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्या. दस्ति नास्ति चावक्तव्य एव घट इति सप्तमो भंगः । अत्र द्रव्यमेव तत्त्वं, अतः स्यादस्तीतिभंग एक एवेति सांख्यमत न युक्त, पर्यायस्यापि प्रतीतिसिद्धत्वात् । तथा पर्याय एव किसी अपेक्षा से घट है-किसी अपेक्षा से नहीं है-यह तीसरा भंग है । क्रम से अर्पित स्वचतुष्टय तथा परचतुष्टय की अपेक्षा घट अस्तिनास्ति स्वरूप है। इसी प्रकार सह अर्पित स्वचतुष्टय तथा परचतुष्टय की अपेक्षा घट किसी अपेक्षा अवाच्य है. क्योकि दोनों धर्मों का एक साथ कथन हो नहीं सकता-यह चौया भग है । द्रव्य को पृथक मानकर और द्रव्य पर्याय को मिला के पंचम भग अर्थात् किसी अपेक्षा से घट है और प्रवक्तव्य है, सिद्ध होता है। पर्याय को भिन्न मान कर, द्रव्य पर्याय को मिला कर किसी अपेक्षा से घट नही है तथा प्रवक्तव्य हैइस छठे भग की प्रवृत्ति होती है। इसी प्रकार अलग अलग ऋम से योजित तथा साथ योजित द्रव्य तथा पर्याय का प्राश्रय करके किसी अपेक्षा से है, नहीं भी है और प्रवक्तव्य है यह मानवा भंग बनता है। ___ इस विषय मे द्रव्य ही तत्त्व है पर्याय नही, इसलिए "पदार्थ है" यह एक भंग ही सत्य है-सी साख्य-मान्यता प्रयुक्त है। क्योकि घट कपाल वगैरह पर्याय भी अनुभव सिद्ध है। तथा
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy