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________________ ( ९२ ) कदेशनिर्णयलक्षणत्वात् प्रमाणाद् भिन्नत्वात् । ननु स्वार्थेकदेशो वस्तु अवस्तु वा ? यदि वस्तु तहि तत्परिच्छेदको नयः प्रमाण, यदि अवस्तु तहि तद्विषयो नयो मिथ्याज्ञानमिति न वक्तव्यं । स्वार्थकदेशो हि न वस्तु नाप्यवस्तु, अपितु वस्त्वंशः । यथा समुद्रैकदेशो न समुद्रो नाप्यसमुद्रः अपि तु तस्यैकदेशः । तन्मात्रो यदि समुद्रः तहि शेषाशोऽसमुद्रः स्यात्, समुद्रबहुता वा भवेत् । तस्यासमुद्रत्वे तु क्व समुद्रवाग्विज्ञानप्रवृत्तिः । ननु नयो यदि वस्तुन एकमेवधर्म गृह्णाति तर्हि तस्य मिथ्याज्ञानत्वं स्यात् । वस्तुन एकधर्मात्मकत्वाभावात् । तद्धि अनेकान्तात्मकमस्तीति समाधान-सो भी नही है । नय वस्तु के एक देश का ही। निर्णायक होता है अतः वह प्रमाण से भिन्न ही है। शका-पदार्थ का एक देश वस्तु है या अवस्तु ? अगर वस्तु है तो उस वस्तु को जानने वाला नय प्रमाण ही होगा और यदि अवस्तु है तो उसको विषय करने वाला नय मिथ्याज्ञान होगा। समाधान-ऐसा नहीं कहना चाहिए । नय के द्वारा ग्रहण किया जाने वाला वस्तु का एक देश निश्चय से न तो वस्तु है और न अवस्तु ही; किन्तु वह वस्तु का अश है। जिस तरह घडे मे भरे हुए समुद्र के जल को न समुद्र ही कह सकते है और न असमुद्र ही; किन्तु वह समुद्र का एक अंश है। अगर घट प्रमाण जल ही समुद्र हो तो वाकी अश असमुद्र कहलायेगा अथवा जितने जल के घडे होगे उतने समुद्र कहे जायेगे तो समुद्र अनेक हो जायेगे। और यदि उसे असमुद्र कहोगे तो समुद्र वचन के ज्ञान की प्रवृत्ति कहा होगी। अतः जैसे घडे का जल समुद्र का एक देश है, असमुद्र नहीं, उसी तरह नय भी प्रमारणैकदेश है, अप्रमाण नही। शंका- अगर नय वस्तु के एक ही धर्म को ग्रहण करता है तो वह मिथ्याज्ञान होगा क्योंकि वस्तु एक धर्मात्मक नहीं होगी वह तो अनेक धर्मात्मक होती है ।
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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